SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 397
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ये जो । च - और । अन्ये अपि - दूसरे भी । ग्राम- नगर - क्षेत्र- देवतादयःग्रामदेवता, नगरदेवता, क्षेत्र देवता आदि । ते–वे । सर्वे-स - सब । amanes ३८० - अर्थ- सङ्कलना ॐ चन्द्र, सूर्य, मङ्गल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु और केतु आदि ग्रह; लोकपाल --- सोम, यम, वरुण, (और) कुबेर, तथा, इन्द्र, सूर्य, कार्तिकेय, विनायक आदि देव एवं ग्रामदेवता, नगरदेवता, क्षेत्रदेवता आदि दूसरे भी जो देव हों, वे सब प्रसन्न हों, प्रसन्न हों और राजा अक्षय कोश और कोठारवाले हों । स्वाहा ॥ ९ ॥ मूल Jain Education International ॐ ॐ । कलत - मित्र- भ्रातृ पुत्र - सुहृत् - स्वजन -सम्बन्धि बन्धु - वर्ग सहिताः - पुत्र - 7 -- प्रीयन्तां प्रीयन्ताम् - प्रसन्न हों, प्रसन्न हों । अक्षीण कोश - कोष्ठागारा:अक्षय कोश और कोठारवाले । - (७) ॐ पुत्र - मित्र - भ्रातृ - कलत्र - सुहृत् - स्वजन - सम्बन्धि-बन्धुवर्ग-सहिता नित्यं चामोद -- प्रमोद - कारिणः ( भवन्तु स्वाहा ) ॥१०॥ शब्दार्थ नरपतय:- राजा । च - और | भवन्तु हों । स्वाहा - स्वाहा । मित्र, भाई, स्त्री, हितैषी, स्नेहीजन तथा स्वजातीय, सम्बन्धी परिवारवाले । नित्यं नित्य । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy