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________________ ३४८ शब्दार्थविणओणय - सिर - रइअंजलि अइर-अचिर, तत्काल । उग्गय -रिसिगण-संथुयं - भक्तिसे उदित हुआ। सरय-शरद् नमे हुए मस्तकपर दोनों हाथ ऋतु। दिवायर-सूर्य । जोड़े हुए ऐसे ऋषियोंके समहिय-बहुत अधिक । समूहसे अच्छी प्रकार स्तुति सप्पभ-प्रभाववाला, कान्ति किये गये। वाला। विणय-भक्ति । ओणय-नमा हुआ तवसा-तपसे । रइअंजलि-दोनों हाथ जोड़े | गयणंगण - वियरण - समुइयहुए। रिसि-ऋषि । गण- चारण-वंदियं - आकाशमें समूह । संथुय-स्तुति किये विचरण करते करते एकत्रित गये । हुए-चारणमुनियोंसे वन्दित । थिमियं-स्थिर, निश्चलता-पूर्वक । गयणंगण-आकाश । वियरणविबुहाहिव-धणवइ - नरवइ- विचरण करते हुए। समु थुय - महियच्चियं - इन्द्र, इय-एकत्रित । चारणकुबेरादि लोकपाल देवों और चारणमुनि । वंदिय-वन्दित। चक्रवर्तियोंद्वारा स्तुत, वन्दित । सिरसा-मस्तकसे । और पूजित । असुर - गरुल - परिवंदियंविबुहाहिव-इन्द्र । धणवइ-कुबेर, असुरकुमार, सुपर्णकुमार आदि नरवइ-चक्रवर्ती । थुय-स्तुत, भवनपति देवताओंसे उत्कृष्ट स्तुति किये गये। महिय- प्रणाम किये हुये। च्चिय-वन्दित और पूजित। असुर-असुरकुमार । गरुलबहुसो-अनेक बार। सुपर्णकुमार । परिवंदियअइरुग्गय - सरय- दिवायर उत्कृष्ट प्रणाम किये हुए। समहिय- सप्पभं - तत्काल | किन्नरोरग - नमंसियं- किन्नर उदित हुए शरद्ऋतुके सूर्यसे | और महोरग आदि व्यन्तरदेवोंबहुत अधिक कान्तिवाले। से पूजित । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org .
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
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