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असणं-अशन ।
सहसागारेणं-सहसाकारसे। अशन-क्षुधाका शमन करे ऐसे
कोई वस्तु इच्छा न होने पर चावल, कठोल, रोटी, पूरी
भी संयोगवशात् अथवा आदि पदार्थ।
हठात् मुँहमें प्रविष्ट हो पाणं-पान ।
जाय उसको सहसागार पान-पानी, छाछ ( मट्ठा ),
कहते हैं। धोवन आदि पीने योग्य । महत्तरागारेणं-महत्तराकारसे । पदार्थ ।
किसी विशिष्ट प्रयोजनके उपखाइम-खादिम ।
स्थित होने पर श्रीसङ्घ खादिम-जिससे कुछ अंशमें अथवा आचार्य महाराज
क्षुधाकी तृप्ति हो ऐसे फल, आज्ञा करें और पच्चक्खाण
गन्ने, चिवड़ा आदि पदार्थ । का समयसे पूर्व पालन साइमं-स्वादिम।
करना पड़े तो उसको स्वादिम–स्वाद लेने योग्य महत्तरागार कहते हैं।
सुपारी, तज, लौंग, इला- सव्वसमाहिवत्तियागारेणं -
यची, चूर्ण आदि पदार्थ । सर्वसमाधिवत्तियागारसे, सर्वअन्नत्थ-इसके अतिरिक्त ।
समाधि-प्रत्ययाकारसे । अणाभोगेणं-अनाभोगसे ।
तोत्र शूल आदि रोगके कारण ( यहाँ मूल शब्द अणाभोगेणं शरीर विह्वल हो और है, किन्तु इनमेंसे अकार प्रत्याख्यानका काल पूर्ण
का लोप हो गया है।) होनेसे पर्व चित्तकी किसो वस्तुका प्रत्याख्यान किया समाधि टिकाने के लिये
है यह बात बिलकुल भूल प्रत्याख्यान पूर्ण किया जानेसे कोई वस्तु खानेमें जाय तो उसको सव्वसमाआ जाय अथवा मुँहमें हिवत्तियागार कहते हैं । रख दी जाय, उसको अना- वोसिरइ-त्याग करता है । भोग कहते हैं। | पोरिसि-पोरिसी।
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