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अर्थ-सङ्कलना
मेरे जीवने दुःखकी परम्परा कर्म-संयोगके कारण ही प्राप्त की है, अत एव इन सर्व कर्म-संयोगोंको मैंने मन, वचन और कायासे वोसिराया-त्याग किया है ।। १३ ।। मूल
११ सम्यक्त्वकी धारणा
[ गाहा ] अरिहंतो मह देवो, जावज्जीवं सुसाहुणो गुरुणो । जिण-पन्नत्तं तत्तं, इअ सम्मत्तं मए गहिअं ॥१४॥
शब्दार्थ
अरिहंतो-अरिहन्त ।
जिन-पन्नत्त-जिनोंद्वारा प्ररूपित। मह-मेरे।
तत्त-तत्त्व। देवो-देव ( हैं )।
इअ-ऐसा। जावज्जीव-जीऊँ वहाँतक। सम्मत्त-सम्यक्त्व। सुसाहुणो-सुसाधु ।
मए-मैंने। गुरुणो-गुरु ( हैं )।
गहिअं-ग्रहण किया है। अर्थ-सङ्कलना___ मैं जोऊँ वहाँतक अरिहन्त मेरे देव हैं, सुसाधु मेरे गुरु हैं और जिनोंद्वारा प्ररूपित तत्त्व ( यह मेरा धर्म है, ) ऐसा सम्यक्त्व मैंने ग्रहण किया है ॥ १४ ॥
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