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________________ २४१ उस समय मति-विभ्रमसे पतिको इनके शीलपर सन्देह हुआ, और उनने कङ्कण-सहित हाथ काटनेकी आज्ञा दी। वधिकोंने जङ्गलमें लेजाकर कङ्कण-सहित इनके हाथ काट लिये, किन्तु शीलके दिव्य प्रभावसे इनके हाथ वैसे-के-वैसे हो गये । इस जङ्गलमें इन्होंने एक पुत्रको जन्म दिया और वहाँसे चलकर एक तापसके आश्रममें आश्रय लिया। शङ्का दूर होने पर पति बादमें पछताया। अनेक वर्षोंके पश्चात् इनसे पतिका पुनः मिलाप हुआ, किन्तु तब तो जोवनका रङ्ग पलट चुका था । अन्तमें दोक्षा ग्रहणकर इन्होंने आत्म-कल्याण किया और स्वर्गमें गयीं। वहांसे च्यवित होकर मोक्षमें जायेंगी। ३२ पुष्पचूला :-देखो अणिकापुत्र आचार्य (६)। ३३-४०:-पद्मावती, गौरी, गान्धारी, लक्ष्मणा, सुसीमा, जम्बूवती, सत्यभामा और रुक्मिणी । ये आठों श्रीकृष्णको पटरानियाँ थीं। इनके शोलकी परीक्षा पृथक पृथक् समयमें हुई थी। किन्तु ये प्रत्येक पार उतरीं। अन्तमें आठों पटरानियोंने दीक्षा लेकर आत्मकल्याण किया। ४१-४७-१ यक्षा, २ यक्षदत्ता, ३ भूता, ४ भूतदत्ता, ५ सेना, ६ वेना और ७ रेणा । ये सातों महासतियां श्रीस्थूलभद्रकी बहिनें थीं। इनको स्मरण-शक्ति बहुत तीव्र थो। इनमें से प्रत्येकने भागवती-दीक्षा अङ्गीकार कर आत्माका उद्धार किया था। इनका विशेष परिचय श्रीस्थूलभद्रके जीवन-चरित्र में मिलेगा। प्र-१६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
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