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________________ २२४ २७ प्रसन्नचन्द्र राजर्षि :-इनके पिता का नाम सोमचन्द्र और माताका नाम धारिणी था। इन्होंने अपने वालकुमारको राज्यासन देकर दीक्षा ग्रहण की थी। एक समय ये राजगृहीके उद्यानमें कायोत्सर्ग करते थे, इतने में सुना कि चम्पानगरोके दधिवाहन राजाने उसकी नगरीको घेर रखा है और अपना पुत्र जो अभी बालक है उसको मारकर राज्य ले लेगा।' इस कारण राज्य तथा कुमारके प्रति मोह उत्पन्न होनेसे तथा उसकी रक्षाका विचार करते करते मानसिक-युद्ध खेलने से कुछ ही समयमें सातवें नरकके योग्य कर्म एकत्रित किये, किन्तु पुनः विचारश्रेणी बदल जानेसे उन सब कर्मोका क्षय कर दिया और वहीं केवलज्ञान प्राप्त किया। ___२८ श्रीयशोभद्रसूरि :- ये श्रीशय्यम्भवसूरिके शिष्य और भद्रबाहु स्वामीके गुरु थे। इन्होंने चारित्रका सम्यग् आराधन किया था। २९ श्रीजम्बूस्वामी :-अखण्ड बालब्रह्मचारी और अतुल वैभवत्यागी। निःस्पृह और वैराग्य-वासित होने पर भी माता-पिताके आग्रहसे आठ कन्याओंसे विवाह किया था, परन्तु पहली ही रात्रिमें उनको उपदेश देकर वैराग्य उत्पन्न किया। इसी समय पाँचसौ चोरोंके साथ चोरी करनेको आया हुआ प्रभव नामक चोरोंका स्वामी भी इनके उपदेशसे पिघल गया। दूसरे दिन सबने साथ मिलकर सुधर्मास्वामीसे दीक्षा ग्रहण की। धीरे धीरे इनको केवलज्ञान प्राप्त हुआ। ये इस युगके, इस क्षेत्रके, अन्तिम केवली गिने जाते हैं। श्रीसुधर्मा स्वामीके बाद जैन शासनका पूर्ण भार इन्होंने वहन किया था। श्रीसुधर्मा स्वामीने आगमोंका गुम्फ इन्हींको उद्देश करके किया था । ३० कुमार वचूल :-विराट देशका राजकुमार। इन्हें बाल्यका लसे ही जुआ, चोरी आदि महाव्यसन की लत पड़ गई थी। पिताने परेशान होकर देश निकाला दिया। तब ये अपनी पत्नी ( तथा एक बहिन के साथ जङ्गलमें रहने लगे। फिर वहीं पल्लीपति हो गये। एक समय इनको पल्ली में मुनिने चातुर्मास किया। चातुर्मास पूर्ण होनेके पश्चात् मुनिके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
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