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________________ २१८ अन्तमें नागदत्तने दीक्षा अङ्गीकृत की और सर्व कर्मोंका क्षय करके - केवलज्ञान प्राप्त किया तथा मोक्षलक्ष्मी का स्वामी हुआ । नागदत्त ( २ ) : – लक्ष्मीपुर नगर में दत्त नामका एक सेठ था । उसकी स्त्रीका नाम देवदत्ता था | उसके एक पुत्र हुआ । जिसका नाम नागदत्त रखा । वह नागकी क्रीडामें अत्यन्त निपुण था । एक समय उसको प्रतिबोध करानेके लिये उसका देवमित्र गारुडीका रूप लेकर उसके निकट आया और वे परस्पर एक दूसरेके सर्पोको खिलाने लगे। तब गारुडीको तो कुछ भी नहीं हुआ, परन्तु नागदत्त गारुडीके सर्पोंके दंशसे मूच्छित हो गया; तब गारुडिकने उसको जिलाया और अपना पूर्वभव सुनाया कि हम दोनों पूर्वभव में मित्रदेव थे । इससे नागदत्तको जाति स्मरण हुआ और उसने दीक्षा ग्रहण की । तदनन्तर क्रोध - मान-माया - लोभरूपी अन्तरङ्ग शत्रुओं को वश में करके मुक्तिको प्राप्त हुए । ९ मेतार्यमुनि :- ये चाण्डालके यहाँ उत्पन्न हुए थे, किन्तु इनका लालन-पालन राजगृहीके एक श्रीमन्तके घर हुआ था । पूर्वजन्म के मित्रदेवकी सहायता से अद्भुत कार्य सिद्ध करनेसे महाराजा श्रेणिकके जामाता बने थे । बारह वर्ष तक गृहस्थ जीवन व्यतीत कर अट्ठाईस वर्षकी आयु में दीक्षा ग्रहण की। एक समय किसी सुनारके यहाँ गोचरी लेनेको गये । वह सुनार सोनेके अलङ्कार -जव बना रहा था, उन्हें छोड़कर घर के अन्दर आहार लेने गया । इतनेमें क्रौञ्च पक्षी आकर वे जब चुग गया । सोनी बाहर आया और जव न देखकर मुनिके प्रति शङ्कित हो पूछने लगा कि 'महाराज ! सुवर्णके जव कहाँ गये ?' महात्मा मेतार्य मुनिने सोचा कि 'यदि मैं पक्षीका नाम लूँगा तो यह सुनार उसको अवश्य मार डालेगा' इसलिये मौन रहे । उन्हें मौन देखकर सुनारकी शङ्का पक्की हो गयी और उनको स्वीकृत कराने के विचारसे मस्तकपर गीले चमड़े की पट्टी खूब कसकर बाँधी तथा धूप में खड़ा रखा । उस पट्टीके सकुचित होनेसे तथा मस्तकपर रक्तका दबाव बढ़ जानेसे असह्यपीडा होने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
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