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________________ राजिमती, ऋषिदत्ता, पद्मावती, अञ्जनासुन्दरी, श्रीदेवी, ज्येष्ठा, सुज्येष्ठा, मृगावती, प्रभावती और चेल्लणा रानी ॥९॥ ब्राह्मी, सुन्दरी, रुक्मिणी, रेवती, कुन्ती, शिवा, जयन्ती, देवकी, द्रौपदी, धारणी, कलावती और पुष्पचूला ।।१०।। तथा पद्मावती, गौरी, गान्धारी, लक्ष्मणा, सुसीमा, जम्बूवती, सत्यभामा, रुक्मिणी ये आठ कृष्णकी पटरानियाँ ।।११। यक्षा, यक्षदत्ता, भूता, भूतदत्ता, सेना, वेना, और रेणा ये सात स्थूलभद्र बहिनें ॥१२॥ इत्यादि निष्कलङ्क शीलको धारण करनेवाली महासतियाँ जयको प्राप्त होती हैं कि जिनके यशका पटह आज भी समग्र त्रिभुवनमें बज रहा है ।।१३।। सूत्र-परिचय- प्रातःस्मरणीम महापुरुष और महासतियों का स्मरण करने के लिये यह सज्झाय प्रातःकालमें राइय-पडिक्कमण करते समय बोली जाती है । इसमें बताये हुए महापुरुषों तथा महासतियोंका संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है महापुरुष १ भरत :-श्रीऋषभदेव भगवान्के सबसे बड़े पुत्र और प्रथम चक्रवर्ती। ये एक समय आरीसा-भुवनमें अपने अलङ्कत शरीरको देखते थे, इतने में एक उँगलीमेंसे अँगूठी निकल गयो, इसलिये वह शोभारहित लगी। यह देखकर अन्य अलङ्कार भी उतारे, तो सारा शरीर शोभारहित लगने लगा। इससे 'अनित्यं संसारे भवति सकलं यन्नयनगम्' संसारमें जो वस्तुएँ आँखोंसे देखी जाती हैं, वे सब नश्वर हैं,' ऐसी अनित्य-भावना होने लगी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
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