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सूत्र-परिचय--
__ इस सूत्रमें श्रीपार्श्वनाथ भगवान्की स्तुति की गयी है । अतः यह 'पासनाह-जिण-थुई' कहलाती है। पहले शब्दसे इसको ‘च उक्कसाय'सूत्र भी कहते हैं।
एक अहोरात्रमें साधु और श्रावकको सात चैत्यवन्दन करने होते हैं, उनमें साधु सातवाँ चैत्यवन्दन 'संथारा-पोरिसी' पढ़ते समय करते हैं और श्रावक सोते समय सातवां चैत्यवन्दन करना भूल न जायँ, इसलिये देवसियपडिक्कमणके अन्तमें सामायिक पारते समय 'लोगस्स' सूत्र कहनेके पश्चात् करते हैं, तब इस सूत्रका उपयोग होता है ।
४४ भरहेसर-सज्झायो
[ 'भरहेसर-बाहुबली'-सज्झाय ] मूल
[ गाहा ] भरहेसर बाहुबली, अभयकुमारो अ ढंढणकुमारो। सिरिओ अणिआउत्तो, अइमुत्तो नागदत्तो अ॥१॥ मेअज्ज थूलभद्दो, वयररिसी नंदिसेण सीहगिरी । कयवन्नो अ सुकोसल, पुंडरिओ केसि करकंडू ॥२॥ हल्ल विहल्ल सुदंसण, साल महासाल सालिभद्दो अ। भद्दो दसण्णभद्दो, पसण्णचंदो अ जसभदो ॥३॥
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