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प्रश्न- इस व्रतमें कितने अतिचार लगते हैं ? . उत्तर-बीस । उनमें सचित्त, सचित्त-सम्बद्ध, संमिश्र, अभिषव और
दुष्पक्व ये पाँच अतिचार भोगके सम्बन्धमें लगते हैं और पन्द्रह
अतिचार इंगाल आदि कर्मोके सम्बन्धमें लगते हैं । प्रश्न-अनर्थदण्ड-विरमण व्रतका अर्थ क्या है ? उत्तर-बिना कारण आत्माको दण्ड देनेसे विरत होनेका व्रत । इस व्रत
को लेनेवाले अपध्यान, पापोपदेश, हिंस्रप्रदान और प्रमादाचरण इन चार वस्तुओंका त्याग करते हैं। अपध्यान अर्थात् आर्तध्यान और रौद्रध्यान । पापोपदेश अर्थात् अन्यको आरम्भ-समारम्भ करनेकी प्रेरणा मिले ऐसे वचन । हिंस्र प्रदान अर्थात् हिंसाकारी वस्तुएँ
दूसरोंको देनी और प्रमादाचरण अर्थात् प्रमादवाला आचरण । प्रश्न-सामायिक-व्रतका अर्थ क्या है ? उत्तर-दो घड़ीतक सर्व पापव्यवहार छोड़ देनेका व्रत। प्रश्न-देशावकाशिक-वतका अर्थ क्या है ? उत्तर-किन्हीं भी व्रतोंमें रखी हुई छूटोंको विशेष मर्यादित करके उसके
एक भागमें स्थिर रहना। इस व्रतमें चौदह नियम रखे जाते हैं,
वे पीछे उपयोगी विषयोंके संग्रहमें दिये हैं। प्रश्न-इस व्रतमें कितने अतिचार लगते हैं ? उत्तर–पाँचः-आनयन-प्रयोग, प्रेष्य-प्रयोग, शब्दानुपात, रूपानुपात और
पुद्गलक्षेप। प्रश्न-प्रोषधोपवास-व्रतका अर्थ क्या है ? उत्तर-अष्टमी, चतुर्दशी आदि पर्वके दिनोंमें उपवासपूर्वक धर्मध्यान
करना। प्रश्न-इस व्रतमें कितने अतिचार लगते हैं ? उत्तर--पाँचः-अप्रतिलेखित-दुष्प्रतिलेखित-शय्या-संस्तारक, अप्रमार्जित
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