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अर्थ-सङ्कलना
सम्यग्दृष्टिवाला जीव आत्मा यद्यपि (प्रतिक्रमण करने के अनन्तर भी) किंचित् पापमय-प्रवृत्तिको करता है, तो भी उसे कर्मबन्ध अल्प होता है, कारण कि वह उसको निर्दयता-पूर्वक नहीं करता || ३६ ||
मूल
शब्दार्थ --
-
तंपि हु सपडिकमणं, सप्परिआवं सउत्तरगुणं च । खिष्पं उवसामेइ, वाहि व्व सुसिक्खिओ विज्जो ||३७||
तं - उसको ।
पि-भी ।
-
१४९
हु - अवश्य ( निश्चयका भाव बत
लाता है) । सपडिक्कमणं-प्रतिक्रमणवाला हो
कर, प्रतिक्रमण करके । सप्परिआवं - पश्चात्तापवाला हो कर, पश्चात्ताप करके ।
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सउत्तरगुणं उत्तर गुणवाला हो
कर, प्रायश्चित्त करके ।
-
च - और |
खिष्पं- शीघ्र |
उवसामेइ - उपशान्त करता है, शमन कर देता है । वाहि व्व - जैसे व्याधिका । सुसिक्खिओ - सुशिक्षित । विज्जो - वैद्य |
अर्थ- सङ्कलना
जैसे सुशिक्षित वैद्य व्याधिका शोघ्र शमन कर देता है, वैसे ही (प्रतिक्रमण करनेवाला सम्यग्दृष्टि जीव उस अल्प कर्म -बन्धका भी ) प्रतिक्रमण करके, पश्चात्ताप करके तथा प्रायश्चित्त करके शीघ्र नाश कर देता है || ३७ ॥
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