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________________ १४५ दोसण-द्वेष से। | तं निदे तं च गरिहामि-पूर्ववत्० व-तथा । अर्थ-सङ्कलना जो मुझसे सुहित, दुःखित और अस्वयत साधुओं की भक्ति राग अथवा द्वेष से हुई हो, उसकी मैं निन्दा करता हूँ और गर्दा करता हूँ ।। ३१ ॥ मूल साहूसु संविभागो, न कओ तव-चरण-करण-जुत्तेसु । संते फासुअदाणे, तं निंदे तं च गरिहामि ॥३२॥ शब्दार्थ साहूसु-साधुओंके विषयमें। । चरण और करणसे युक्त; तपस्वी, संविभागो-संविभाग, वस्तुओंका | . चारित्रशील और क्रियापात्र । . एक भाग। संते फासुअदाणे-दानके योग्य न कओ-नहीं किया हो, नहीं वस्तुएँ उपस्थित होते हुए भी। दिया हो। तं निदे तं च गरिहामितव-चरण-करण-जुत्त सु-तप, पूर्ववत् अर्थ-सङ्कलना तपस्वी, चारित्रशील और क्रियापात्र साधुओं के दान देने योग्य वस्तुएँ उपस्थित होते हुए भी, उनमेंसे एक भाग नहीं दिया हो, तो अपने उस दुष्कृत्यकी मैं निन्दा करता हूँ और गर्दा करता हूँ॥३२॥ इह लोए परलोए, जीविअ-मरणे अ आसंस-पओगे। पंचविहो अइआरो, मा मज्झं हुज्ज मरणंते ॥३३॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
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