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एवं त्रिधा वस्तुगते तं भविने निदर्शितम् । रत्नत्रयं तत्त्वतोऽपि स्यादेकं तदनेकभूः ॥२१॥
अन्वय एवं तं (धर्मः) वस्तुगते त्रिधा भविने निदर्शितम्। तत्त्वतः रत्नत्रयं एकं अपि तत् अनेक भू स्यात् ॥२१॥
___ अर्थ-इस प्रकार वह धर्म प्रत्येक वस्तु में तीन प्रकार से समाविष्ट है जो मैंने भवि जीवों को उनके हित के लिए बताए हैं। तत्त्व से ये ज्ञान, दर्शन एवं चारित्र रूप रत्नत्रय एक होते हुए भी अनेक रूप हो जाते हैं।
॥ इति षष्ठोऽध्यायः॥
अहंद्गीता
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