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विवेचन - इच्छा ही संसार में दुःख का मूल कारण है । इच्छा से किसी भी काम में प्रवृत्ति दुःख परिणामी एवं बन्ध परिणामी होती है । निष्काम भावना से हुई प्रवृत्ति में संवर भाव निहित है । अतः उससे कर्म निर्जरा होती है । इच्छा आसव है एवं अनिच्छा मोक्ष है। वीतराग स्तोत्र में कहा गया है
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आस्रवो भवहेतुः स्यात् संवरो मोक्षकारणम् । कैवल्यायात्मनो ज्ञानं ध्यानं वस्तुविरागता । भवायानात्मनो ज्ञानं ध्यानं वस्तुविरागता ॥ १९ ॥
अन्वय-आत्मनः ज्ञानं कैवल्याय, वस्तुविरागता ध्यानं, अनात्मनः ज्ञानं भवाय ध्यानं वस्तुविरागता ।। १८ ।।
अर्थ - आत्मज्ञान केवलज्ञान का कारण है । वस्तुविरक्ति ध्यान का साधन है और अनात्मा का चिन्तन संसार का कारण है बाह्य वस्तु से विरक्त हो आत्म वस्तु में ध्यान लगाना श्रेयस्कर है ।
आध्यात्मिको विरक्तः स्यात्तदेवाध्यात्मलक्षणम् । कषायविषयैर्वान्तिः स्यादध्यात्मसुधारसे ॥ २० ॥
अन्वय - आध्यात्मिकः विरक्तः स्यात् तत् एव अध्यात्मलक्षणम् । अध्यात्मसुधारसे कषाय विषयैः वान्तिः स्यात् ॥ २० ॥
अर्थ - जब आध्यात्मिक ज्ञान का यही लक्षण है कि उसके होने पर आत्मा विरक्त हो जाती है एवं उस अध्यात्म सुधारस का पान करते हुए विषय कषायों की उल्टी हो जाती है अर्थात् विषय एवं कषायों की आत्मा वमन कर देती हैं ।
विवेचन-वैराग्य ही अध्यात्म का लक्षण है। कषायों एवं विषयों से सदा विमुख रहता है उनकी तरफ दृष्टिपात भी नहीं करता ।
आत्मज्ञानवान् व्यक्ति
औदासिन्यात्प्रवृत्तिः स्याद् ज्ञानिनो निर्जरास्पदम् । तत्वज्ञानादतो मुक्तिं जगुर्नैयायिकाः जिनाः ॥ २१ ॥
अध्याय प्रथमः
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