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छोड़ती है तब तक न तो इच्छा का विनाश होता है और न आत्मा में सच्चा प्रकाश उत्पन्न होता है।
भावनैस्तदनित्यायै-भावस्यापचयं चयम् । पश्यतः करकंडूवनश्येदिच्छा विरागिणः ॥ १८॥
अन्वय-तत् अनित्यायैः भावनैः भावस्य अपचयं चयं पश्यतः विरागिणः करकण्डूवत् इच्छा नश्येत् ॥१८॥
अर्थ-सभी बाह्य आभ्यन्तर संयोग अनित्य है इस प्रकार अनित्यादि बारह भावनाओं से भाव का नाश और संचय देखते हुए वैराग्यशाली की इच्छाएं उसी प्रकार नष्ट हो जाती हैं जिस प्रकार करकण्ड् मुनि की इच्छाएं नष्ट हो गई।
कामास्थानानि कामिन्य-स्तास्त्याज्यास्तज्जिगीषया । सर्वास्त्यक्तुमशक्तो यः स स्वीयामेव कामयेत् ॥ १९ ॥
अन्वय-कामास्थानानि कामिन्यः तत् जिगीषया ताः त्याज्याः। यः सर्वाः त्यक्तुं अशक्तः स स्वीयां एव कामयेत् ॥१९॥
अर्थ-कामिनियां इच्छाओं की घर हैं अतः इच्छाओं को जीतने की इच्छावाले को उन्हें छोड़ देना चाहिए। जो व्यक्ति उन सबको नहीं छोड़ सकता है उसे अपनी स्त्री की ही कामना करनी चाहिए। अर्थात् वासना जय के लिये कामभोगकी वृत्ति के संक्षेप से प्रारंभ करना चाहिये।
मद्यं मांसं नवनीतं मधु नानारसात्मकम् । अभक्ष्यं वर्जयेत्सर्वं कामं संतर्जयेत् सुधीः ॥ २० ॥
अन्वय-सुधीः मद्यं मांसं नवनीतं नानारसात्मकं मधु सर्व अभक्षं वर्जयेत् कामं संतर्जयेत् ।। २० ॥
* अनित्य, अशरण, संसार, एकत्व, अन्यत्व, अशुचित्व, आस्रव, संवर, निर्जरा, धर्म स्वाख्यात, लोकस्वरूप, बोधिदुर्लभ ये १२ भावनाएं हैं।
सप्तदशोऽध्यायः
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