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कई रचनायें मानी जाती है पर उनका प्रमागपुष्ट उल्लेख प्राप्त नहीं है अतः उनका उल्लेख यहाँ समीचीन नहीं होगा।' अर्हद्गीता' नामक उनका प्रसिद्ध ग्रन्थ ३६ अध्यायों में समाप्त हुआ है जिसमें जैन दर्शन का स्वरूप समझाया गया है जिसका विस्तृत विवेचन अगले पृष्ठों में किया जा रहा है।
उपाध्याय मेघविजयजी की प्रतिभा असाधारण थी, प्राप्त कृतियों की गुणात्मकता एवं गणनात्मकता के आधार पर यह निःस्संकोच कहा जा सकता है कि वे अपने युग के अधिकारी विद्वान थे । व्याकरण, काव्य, ज्योतिष, न्याय, कथा साहित्य, सामुद्रिक, मंत्र, तंत्र, योग तथा अध्यात्म विषयों पर उनकी लेखनी समान रूप से चली है। वे यशोविजय युग के कृति काव्य प्रणेता थे जिन्होंने परवर्ती एक पूर्ववत्ती जैन साहित्य में अपना विशिष्ट स्थान प्राप्त किया।
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