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. अर्थ-जल में सफेद पाल के बिना नौका का कौन रक्षण कर सकता हैं ? कोई नहीं। वेसे ही संसार सागर से पार होने के लिए श्वेतवस्त्रधारी साधुओं का आश्रय लेना चाहिए।
ज्ञानं सूत्रं रुचिश्चार्थों नियुक्तिरुभयात्मकम् । चरणं तत्त्रये धर्मशास्त्रं बोधाय देहिनाम् ॥ ८ ॥
अन्वय-ज्ञानं सूत्रं रुचिः च अर्थः नियुक्तिः उभयात्मकम् । देहिनां बोधाय त्रये चरणं तत् धर्मशास्त्रम् ॥ ८॥
अर्थ-ज्ञान सूत्र है-उसमें रुचि अर्थ है, इन दोनों से मिलकर नियुक्ति (विवेचन) बनती है। सूत्र अर्थ एवं नियुक्ति ये तीनों मिलकर चारित्ररूप (आचार) होता है। यही सूत्र विवेचन एवं तदनुसार वर्तन धर्म कहलाता है जो प्राणियों के बोधि के लिए होता है।
धर्मो वृषभमूत्यैव श्रद्धेयः श्राद्धरोचकैः । पदैश्चतुर्भिः पूर्णोऽयं नात्र किं सुकृतोदयः ॥९॥
अन्वय-धर्मो वृषभ मूत्यैव श्राद्धरोचकैः श्रद्धेयः। अयं चतुर्भि: पदैः पूर्णः । अत्र सुकृतोदय: किं न ।
अर्थ-यह धर्म नन्दी की मूर्ति की तरह ज्ञान दर्शन चारित्र एवं तप रूप चारों पदों से पूर्ण है एवं निष्ठावान् पुरुषों के द्वारा श्रद्धा करने योग्य है। इसका आचरण करने पर पुण्योदय क्यों नहीं होगा ?
देवः कृष्णो वराहास्यः कल्की यत्राभिमन्यते । विप्रयोगि गुरुत्वं च धर्मः स कलितोदितः ॥ १० ॥
अन्वय-यत्र देवः कृष्णः वराहास्यः कल्की। विप्रयोगि गुरुत्वं च अभिमन्यते सः धर्मः कलितोदितः।
अर्थ-जहाँ पर देवता के कृष्ण वराहावतार कल्की अवतार आदि संसार जनित रूप माने जाते हैं और जहाँ विपरिताचारी को गुरुत्व के पद से अष्टमोऽध्यायाः
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