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उवसग्गहरंस्तोत्रस्य पादपूर्तिरूपं पार्श्वजिनस्तोत्रम्
श्री जिनप्रभसूरि (? लक्ष्मी कल्लोलगणि) कृतं
पणमिय सुरनरपुइय - पयकमल पुरिसपुंडरीय पासं । संथवणं भत्तिपवणो भणामि भवभमणभीममणो ॥ १ ॥ उवसग्गहरं पास पणमह नटुटुकम्मदढपासं । सरियपासं विणहियलच्छीतणयपासं ॥ २ ॥ जं जाणइ तेलुक्क पासं वंदामि कम्मघणमुक्त । जो झाइऊण सुक्क झाणं पत्तो सिवमलुक्क ॥ ३ ॥ विसहरविसनिन्नास रोसगईदाइभयकयविणासं । मेरुगिरिसन्निकासं पूरिअआसं नमह पासं ॥ ४ ॥
मरयमणितणुभासं मंगल-कल्लाण- आवासं । टालियभवसंतासं थुणिमो पासं गुणपयासं ॥। ५ ।। विसहरफुलिंगमंत सच्च निच्चं मणे धरिजंतं । कुणइ विसं उवसंत भविया ईय मुणह निमंतं ॥ ६ ॥ पयपण देवदणुओ कंठे धारेइ जो सया मणुओ । सोइ विमलतणुओ नामक्खरमंत भवि मणुओ ॥ ७ ॥ तस्सग्गद्दरोगमारी पराभवं न करेइ विसमारी । जो तुह सुमरणकारी संसारी पत्तभवपारी ॥ ८ ॥ तरसइ सिज्झइ कामं दुट्ठजरा जंति उवसामं । संथुइ जो पकामं अभिरामं तुज्झ गुणगामं ॥ ९ ॥ चिट्ठr दूरे मंतो जो झायइ निश्चमेव एगंतो । तुह नाममसंतो सो जाइ लच्छिमइ मंतो ॥ १० ॥ न सइ दुट्टभोई तुज्झ पणामो वि बहुफलो होइ ।
तुह नामेण वि जोइ न हवइ न पराहवइ कोइ ॥ ११ ॥ नरतिरिए वि जीवा भमंति नरए य कायरा कीवा । सामिय जिण समय दीवा जेहिं न तुह नामिया गीवा ।। १२ ।।
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