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________________ 7. आचार्य श्री रवीचन्द्र सूरीजी द्वारा कल्याण मासिक के अंक संवत 1981 में समाधान हैकि अव्यवहार राशी के जीवों की व्यवहार राशी के जीवों द्वारा हिंसा या कोई भी विराधना नहीं होती नहीं हो सकती। उपरोक्त प्रमाणों से निष्कर्ष निकलता है कि सूक्ष्म निगोद वाले अर्थात अव्यवहार राशी के जीवों के कोई भी शरीर नहीं है भगवती सूत्र के आधार से तो शरीर है ही नहीं । कदाचित सूक्ष्म शब्द से कुछ अंश माना जाय तो वह इतना सूक्ष्म है कि उसके द्वारा किसी की भी विराधना हो सकती नहीं और उसकी भी अन्य द्वारा विराधना होती नहीं और ऐसा संभव भी नहीं। __ कोई भी जीव अव्यवहार राशी से निकलकर व्यवहार राशी में आता है अर्थात अनादि काल से आत्मा अव्यवहार राशी में था, जिसे सूक्ष्म निगोद भी कहा जाता है जिसके मन नहीं होने से संकल्प, विकल्प, सोच विचार नहीं कर सकता । वचन नहीं होने से बोल नहीं सकता, काया नहीं होने से किसी का कुछ कर नहीं सकता जैसा कि ऊपर तत्वार्थ सूत्र में दर्शाया गया है। 8. कर्म ग्रंथ प्रथम गाथा नंबर 54, 57, 61 में चार घाती कर्म के बंध के जो कारण बताये है वह अव्यवहार राशी याने सूक्ष्म निगोद के जीवों के पास ये कारण करने के साधन ही नहीं है । 9. "क्रिया ओ कर्म" परिणमे बंध यह वाक्य जग जाहिर है इससे भी यही फलित होता है कि कोई भी क्रिया करें तभी कर्मों का आना और बंधना शुरू होता है। क्रिया करने के लिये मन, वचन और काय की आवश्यकता है कम से कम काय तो ऐसी चाहिये कि वह कुछ कर सके जब कि सूक्ष्म निगोद के जीवों के पास वह भी नहीं है। 10. वंदिता सूत्र की गाथा : एवं अट्ठविंह कम्मं, राग दोस समज्जिअं । आलोअंतो अनिंदंतो, खिप्पं हणइ सु सावओ । अर्थः इस तरह राग द्वेष द्वारा उपार्जित कर्म आलोयणा व निंदा द्वारा सु श्रावक खत्म कर देता है। इस से यह ध्वनित होता है कि कर्म राग द्वेष द्वारा ही उपार्जित होता है और राग होने का कारण किसी वस्तु का पास में होना वस्तु आत्मा के पास हो या उसे दिखाई दे, व वस्तु से उपलब्ध सुख का ज्ञान हो तो ही उस पर राग उत्पन्न होता है और राग होने पर ही उस वस्तु के किसी 56) क्या यह सत्य है ? Jain Education International For Privaté & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001506
Book TitleKya yah Satya hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHajarimal Bhoormal Jain
PublisherShuddh Sanatan Jain Dharm Sabarmati
Publication Year1994
Total Pages74
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size4 MB
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