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________________ 4. भगवती सूत्र के शतक 20 उद्देश्य 10 में आयुष्य के सोपाक्रमी व निरूपाक्रमी के दो भेद बताये हो जिसमें निरपाक्रमी शरीर किस-किस का होता है । क्या विशेषता है? निरपक्रमी शरीर वाले का किसी तरह की उपक्रम अर्थात घात लगता नहीं अर्थात घात से आयु क्षय होता नहीं । केवल ज्ञानियों का शरीर भी निरूपाक्रमी ही होता है। 5. तत्वार्थ सत्र अ. गाथा. औपपातिक चरमदेहा उत्तम पुरुष असंख्यात वर्षायुषः अनपवर्तायुषः । उपरोक्त गाथा में भी चरम देही का आयुष्य अपवर्तनीय कहा गया है। अतः ये स्पष्ट प्रमाण है इन महान व्यक्तियों के आयुष्य में कोई अन्तर पड़ता नहीं चाहे जितने घात लगे, कष्ट पड़े आयुष्य घटे नहीं । 6. अगर केवलीयों को भूख हो तो आहार करने के बाद 4-6 घंटे बाद जैसे हर किसी व्यक्ति को भूख लग जाती है याने हमने शाम को भोजन किया है। तो रात को अथवा प्रातः भूख लग जाती है भूख लगते ही खाना मिल जाय ऐसा होता नहीं घंटा दो घंटे अथवा कुछ समय भूख की पूर्ती करने में लगता ही है तो जो केवली भगवंत आहार करें तो उनको भूख लगनी ही चाहिये और भूख लगने पर गौचरी लाकर आहार करें इस में कुछ समय तो लगता ही है इस समय के अंतराल में भूख सहन करनी ही पड़ती है तो इस समय के अंतर तक "भोगोतराय" सहन करना पड़ता है जबकि "अंतराय कर्म" के अंतर्गत भोगांतराय होने से भोगांतराय का भी क्षय हो चुका | भोगांतराय का क्षय होने पर भी "भोगांतराय" सहन करना पड़े यह कैसी विचित्रता है। सोचने की विषय है। 7. केवल ज्ञानीयों को भूख लगने पर गौचरी जाना पड़े आहार लाना पड़े करना पड़े तो अगर यह कार्य न करे तो क्या अरति होती है और करने पर रति । यदि अरति न हो तो जाने की आवश्यकता नहीं अगर जरूरत है तो पूर्ती होने पर रति भी हो सकती है जो सर्वथा अनुचित है। 8. केवल ज्ञान होने के बाद वेदनीय कर्म बाकी है किंतु सातावेदनीय असाता नहीं । यदि असाता वेदनीय बाकी रहता हो तो भगवान महावीर स्वामी को केवली अवस्था में तेजोलेश्या की जो अशाता हुई उसको क्या यह सत्य है ? (49 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001506
Book TitleKya yah Satya hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHajarimal Bhoormal Jain
PublisherShuddh Sanatan Jain Dharm Sabarmati
Publication Year1994
Total Pages74
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size4 MB
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