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________________ "केवली आहार " जैन समाज के श्वेतांबर, दिगम्बर मान्यताओं में एक मान्यता भेद यह भी है कि केवली भगवंत भी आहार करते है करना पड़ता है यह मान्यता श्वेतांबर है (दिगम्बर मान्यता आहार नहीं करने की है) एवं तीर्थंकर भगवंत को भी केवली पर्याय में आहार करना पड़ता है अतः करते है । 1. श्वेतांबर मान्यता यह है कि केवलीयों को आहार करना ही पड़ता है अन्यथा हजारों वर्ष तक औदारिक शरीर कैसे रह सकता है ? और केवली भगवंत (तीर्थंकर भी) निर्वाण के समय छट्ट-अठम् आदि तपस्या करते है। तो हमें यह सोचना है कि केवल ज्ञान होने के बाद शरीर के टिकाने की आवश्यकता केवलीयों को होती है क्या ? तपस्या करने की भी जरूरत होती है क्या ? शरीर के टिकाने और तपस्या करने की जरूरत उसी को होती है जिसे अभी अपनी अपूर्णता है शरीर द्वारा कुछ प्राप्त करना है कमी को पूर्ण करना है जबकि केवली भगवंत को अब कोई आवश्यकता नहीं अपूर्णता नहीं शरीर रहे तो भी ठीक है उपदेश द्वारा दूसरों का उद्धार है शरीर नहीं रहे तो भी मोक्ष में जाना निश्चित है अतः मोक्ष में ही जाते है अतः कोई कारण नहीं कि वे शरीर के लिये आहार करे या शरीर संबंधी कोई प्रयास करें और निर्वाण के समय तपस्या करें। इन्हें न तो शरीर पर मूर्छा है न शरीर द्वारा कोई प्राप्त करना है अतः न आहार की आवश्यकता है न तपस्या करने की आवश्यकता । 2. चार घाती कर्म जिसके क्षय होने पर ही केवल ज्ञान होता है यह मान्यता सबकी एक ही है श्वेतांबर मान्यता भी यही है । और सही है । चार घाती कर्मों में एक घाती कर्म अंतराय कर्म है जिसके पांच भेदों में एक भेद "दानांतराय" है जिसका भी क्षय हो जाता है तीर्थंकर भगवंत एवं सामान्य केवली भगवंत दिक्षा लेने के बाद केवल ज्ञान होने के पहले आहार का दान लेते है और उपदेश अर्थात ज्ञान दान देते है यह एक अपवाद जरूर है कि तीर्थंकर भगवंत छद्मस्थ अवस्था में उपदेश प्रायः नहीं देते सामान्य केवलीयों के लिये यह नियम नहीं । गौतम स्वामी ने छद्मस्थ अवस्था में धर्मो पदेश दिया है और उनके उपदेश द्वारा कई आत्माओं ने अपना कल्याण किया है यह सर्व विदित है अतः साधू क्या यह सत्य है ? (47 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001506
Book TitleKya yah Satya hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHajarimal Bhoormal Jain
PublisherShuddh Sanatan Jain Dharm Sabarmati
Publication Year1994
Total Pages74
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size4 MB
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