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स्तन पुष्ट है से शोभित कमल पत्रों के समान आंख वाली एवम् दोनों स्तनों के बीच अंतर नहीं है ऐसे पुष्ट स्तनों से जिसका शरीर झुका हुआ है रत्न और सुवर्ण के आभूषणों से शोभित कटि तट वाली उत्तम कंकण चूंटरु आदि अनेक प्रकार से मनुष्यों के मन को हरने वाली रूपवान देवी
यह स्तवन तो तीर्थंकरों के गुणगान का है किन्तु यह सब गौण कर उपरोक्त गाथा में देवी के अंग रूप आदि के गुणों को ही गाया गया है क्या चारित्रवान के लिये ऐसे गुणगान करना उचित है जो कि कामोत्तेजक हो सकते है।
"भक्तामर"
इस सूत्र में विशेषतः प्रथम तीर्थंकर भगवंत के गुणगान का वर्णन है फिर भी गाथा नं.34 में गज भय, 35 में सिंह भय, 36 में अग्नि भय, 37 में सर्प भय, 38 में संग्राम भय, 40 में जल भय, 41 रोग भय, 42 में बंधन भय आदि भयों के निवारण में तीर्थकर भगवंत का प्रभाव बताया गया है जो कि भौतिकी है। "कल्याण मंदिर"
इसमें भगवान के गुणों का विभिन्न प्रकार से वर्णन है एवं इनके प्रभाव से कर्म क्षय का कारण बताया गया है कहीं भी मंत्र का उच्चार नहीं है एवं अष्ट महा प्रातिहार्य का विशिष्ट प्रकार से वर्णन जो तीर्थंकर प्रभू को केवल ज्ञान होने से उत्पन्न अतिशयों कोसूचित करता है । अतः अनुकरणीय एवं अनुमोदनीय है। “वृहद शांति"
इसमें तो प्रायः संपूर्णतया भौतिक दु:खों के निवारण एवं सुखों के प्राप्त होने की कामना का वर्णन है।
तीर्थंकर भगवंत मानो रुठ गये हो उद्घोष पूर्वक प्रसन्न होने को एवं शांति करने को कहा गया है। - चंद्र, सूर्य, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु, केतू आदि देवताओं
को प्रसन्न होने के साथ साथ राज्य के खजाने को भरने को आवेदन किया गया है।
क्या यह सत्य है ?
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