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________________ (पाप उपार्जन करने वाले उत्तीस प्रकार कहे गये है, जिसमें सत्तावीसमा मंत्रानुयोग है) 8) ठाणांग सूत्र:- ठाणा नवम गाथा सतावीस । नवविधे पाव सुय पसंगे पण्णते तं जहां :- उप्पति, निमित्तं, मंते आइक्खिए तिगिच्छाए (पाप सूत्र नौ प्रकार का कहा गया है जिसमें निमित्त, मंत्र भी आया है) 9) तित्थोगाली पइन्नयं गाथा = 800 मंतेहियं, चुणेहियं, वुच्छिय विज्जाहिं तह निमित्तेणं काउण अवग्धायं भमिहंति अनंत संसारे । मंत्रों, चूर्णो कुत्सित विद्याओं निमित्तों द्वारा उपघात कर अनंत संसार सागर तक भटकते रहेंगे (शोधक, अनुवाद : पन्यासजी श्री कल्याण विजयजी एवम् ठा. गजसिंह राठौड़) न्याय व्याकरण तीर्थ ___10) योग शास्त्र : आठमो प्रकाश गाथा 71 (रचयिता : कालिकाल सर्वज्ञ- (भाषांतरकर्ता : आचार्य श्री हेमसागर सूरीश्वरजी) श्री हेमचन्द्रचार्यजी) मंत्र प्रणव पूवेडियं फल मैहिक मिच्छामिः ध्येयः प्रणव हिनस्तु निर्वाण पद कांक्षिभी: नमो अरहंताणं: आलोक संबंधी फलनी इच्छा वालाएं ऊंकार सहित ध्यान करवु परंतु मोक्षनी इच्छा वालाऐ तो प्रणव रहित पद नु ध्यान करवु ऊ प्रणव वालों मंत्र छ । 11) बौद्ध भिक्षुओं में विक्रम की पांचवीं छठी शती में तंत्रवाद का प्रचार हो गया था पर जैन श्रमण इससे बचे हुए थे, बौद्धों के उत्तर भारत से चले जाने के बाद जैन श्रमणों में भी कहीं कहीं मंत्रतंत्र का प्रचलन हुआ, उपसर्ग हर स्तवादि स्त्रोतों की उत्पति इसी समय में हुई थी यह समय था विक्रमी नवी दशवी शती । (प्रबंध पारिजात :- पेज 118-119 : लेखक- पन्यासजी श्री कल्याण विजयजीगणी, जालौर) 24) क्या यह सत्य है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001506
Book TitleKya yah Satya hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHajarimal Bhoormal Jain
PublisherShuddh Sanatan Jain Dharm Sabarmati
Publication Year1994
Total Pages74
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size4 MB
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