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________________ ज्ञानी भगवंत से पूछकर उत्तर लाने में सहाय कर सकते है किन्तु वे खुद प्रायः नहीं करते । सरस्वती, लक्ष्मी ये तो सिर्फ ज्ञान व ऋद्धि के काल्पनिक नाम है, कोई व्यक्ति विशेष नहीं। आज हमारी शिथिलता इतनी बढ़ गई है एवं मनोबल इतना कमजोर हो गया है कि प्रति क्षण हम सहायताकी आवश्यकता समझते है हममें न सहन करने की शक्ति है न कर्म पर विश्वास है । इसी कारण से देवी देवताओं की सहायता को आवश्यक क्रियाओं में जोड़ कर उनकी शरण में जाने लगते है। जैन दर्शन लोकोत्तर है आत्मिक है कर्म प्रधान भी है ऐसा समझ में आ जाय तो कई समस्याओं का समाधान हो जायगा परंतु हमारी रुढी परंपरा के कारण जीत व्यवहार का बहाना आगम सूत्रों के लिपिबद्ध होने के बाद के आचार्यों की रचनाओं व क्रियाओं पर एक पक्षीय श्रद्धा ये सभी समझने में काफी पर्याप्त समय व शक्ति लगा सकते है। 22 ) क्या यह सत्य है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001506
Book TitleKya yah Satya hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHajarimal Bhoormal Jain
PublisherShuddh Sanatan Jain Dharm Sabarmati
Publication Year1994
Total Pages74
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size4 MB
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