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[74] इम राय कुमर-अणुराय-गिद्ध, धाई धुरि तसु परिरंभ किद्ध । उच्छंगि लेई पुच्छइ नरिंद, तुम अच्छइ कुशल ति कुमर-इंद ॥ ३२६ इहु देस नयर वर गाम ठाम, बहु रुज्ज-रिद्धि-भर-भरिय धाम ।। मह सव्व एह निय-चलण-ठाण, दितइ ति किद्ध तइ सफल-माण ॥३२७ कहु कवण कुमर तुम्ह कवण देस, पिय माय भाय परिघर- निवेस । कुण नयरि वसउ तुम्ह सुह-निवास,
सहु अक्खउ अक्खय-गुण-निवास ॥३२८ इम सुणिय कुमर-वर राय-वाणि, बहु-विणय-नमण-पुव्वंग-दाणि । कह देव सुकय आएस हेव, पुच्छइ जं होस्यइ मुणिसि तेव ।। ३२९
गाथा इय निसुणिऊण राया, जायातुल्लाणुराग-वच्छल्लो । चिंतइ संताणमहो, परोवयारिक्कचवलत्तं ॥ ३३०
नाराच एम चिंति चित्ति भूव धूअभूरिभग्गसंगओ कुमारसार-पुत्त-पेम-पाणि-वाणि-संगओ । कुमारि-गेहि चित्त-रेहि रेहियम्मि वच्चए सुतीइ पीइ दंसणिज्ज दंसणेण वच्चए ॥ ३३१ सुपुत्ति झत्ति तुज्झ सत्ति-पुण्ण-पुप्फ-ताणिओ कुमार एस गुण-निवेस तुम्ह कज्जि आणिओ । संभलिय एम वयण खेम निय सुबप्प-वयणओ सा दिअइ माण चत्त-ठाण आससेण जयणउ ॥ ३३२ तउ तुरंत तीइ नयण सज्ज-कज्ज-कारणे कुमार-राय राय-लोग-पच्चयावहारणे । सुगंध दव्व सव्व आणि मंडलग्ग मंडए सुनाणझाण... ... डंबरेण तंडए ॥ ३३३ सुछन्न वल्लि चूरि पूरि तासु चक्खु-कूवया पलोयमाण रायराण रइस रूव भूवया । भणंत एम पत्तपेम पत्त देव संदरा
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