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अडिल्ला वेणि-दंड विसहर किरि वासुकि हरि-वाहण-भय किय-नव-वास कि । भरणि-भूअ-भय-भीय कि ससहरि सामी-सरण लिद्ध जिम ससहरि ॥२८८
गगनगति (= हरिगीत) हर-हास कुंद कपूर वि हसिय हसिय लहु नव-जुव्वणा तिअ तिक्क तिक्ख कडक्ख चंचल चडिय चावासव्वणा । सिंगार-सार सुवेस-सज्जिय जाणि सुरवइ-सुंदरी लहु समरसीह-किसोर कामुय वसइ जाणि कि कंदरी ॥२८९
षट्पद नागिणि नवि पायालि इसिय सुर-लोगि न सुंदरि रमणि-रयण निम्माण जणि विहि घडिय सयल-धुरि ॥ इकजीहि हुं पक्खि दक्खगुण वज्जिय मुद्धहं तासु लडह-लावण्ण-वण्ण किम मुणउँ सुमुंधह ॥ एरिसी नारि नरराय घरि, विहि-दोसइँ दूसिय निउण जच्चंध-नयणि जुव्वण-समइ, दिट्ठ सभंति ति-विसउणि ॥२९०
गाथा तं भव-रूव-सुजुव्वण-उब्भड-वेसं निवो य ब्भु-विसेसं । दट्ठण नयण-वज्जिय--वयणं वयणं भणइ एवं ।।२९१ अहहो परिसय-पुरिसा, पासह विवरीय-विलिसियं विहिणो । जमिणं रूवं निम्मिय, विडंबियं अंबएहिँ विणा ॥२९२
षट्पद विहु विहि-वसि सकलंक कमल-नालिहिँ कंटय पुण सायर-नीर अपेय पवर पंडिअ-जण निद्धण ।। दइअहं दिद्ध विओग रूव दोहग्गिहिँ दिद्धउ धणवइ कियं किवणत्तु रुद्द भिक्खत्तण किद्धउ ॥ ब्रह्मा कुलाल-कम्मिहिँ विणदिगल दह-रूव हुओ
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