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________________ [61] किव हणि कुजाण - कुविलक्खणह, कवियण जाणइँ जं न मण । इम कहि गद्द गुणवंतयह, जग- उप्परि किम जाणइ गुण ॥ २२३ चालि इक्क धम्म अविहs मित्त, जसु सुहिय निम्मल चित्त । जिहँ थकु हुइ सुभद्द, निदीइ ते किम भद्द ॥ २२४ इम सुणिय निव सुअ-वयण, तव सुयण विहसियवयण । बुल्लइ ति बोल कुबोल, जाणि किं पडइ गिरि-टोल ॥२२५ दीसंति तुअ बहु भद्द, संपइ न मिल्हसि वद्द । जइ मूढ तुं नवि होइ, पहाण सच्चउँ सोइ ॥ २२६ जह केवि गाम - गमार, जणणी- भणिउ इकवार । गहियत्थ कहमवि पुत्त, मिल्हविउ नवि कुल- पुत्त ॥ २२७ अभया जणणिअ पुच्छि विलगउँ ति संडह पुच्छि । करि धरिय निय-बल-माणि, तिहँ लोय मिलिय अमाणि ॥ २२८ तसु मत्त-लत्त - पहारि, पडिया सु दंत विचारि । मिल्हि न पुच्छ सहूढ तिम तुम - वि होइसि मूढ ॥ २२९ कुलपुत्रकथा पुच्छइ सुयण कहि देव, सिउँ करिसि पणि पुणि हेव । विण नयण - कमल न अत्थि, तुअ किंपि सत्थि सुअत्थि ||२३० अमरिस - भरियह ती वयणि, हिं कुमरवर तीणि । तसु वयण अंगिकार, किय जेम करवत-धार ॥ २३१ पडिवन्न वाचावीर, ललियंग साहस-धीर । सुह सुण इक्किहिं गामि, पन्नउ ति साखा - नामि ॥ २३२ भवियव्व-कम्म-नियोगि, पुच्छइ ति गाम नियोगि । पुण कहिउ तिम तिणि वार जिम पुव्व-गाम-गमार ॥२३३ अह चलिय पुण दुइ मग्गि, जंपिइ सुयण तसु अग्गि । सुणि सच्च कुमर नरिंद, तुं पुहवि जाण कि इंद ॥२३४ बहु सच्च सील निहाण, तुअ समउ जगि कोइ न जाण । निय- अप्पि अप्प निहालि, पडिवन्न वाचा पालि ॥ २३५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001476
Book TitleSagardatt and Lalitang Rasaka
Original Sutra AuthorShantisuri , Ishwarsuri
AuthorShilchandrasuri, H C Bhayani
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages114
LanguageApbhramsa
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Kavya
File Size5 MB
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