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ता झत्ति कुमर- राओ जंपइ रे दुट्ठ धिट्ठ पाविट्ठ । तुह सज्जणाभिहाणं, अभियक्खा जह विसस्सेव ॥२०० किंचेवं दुच्छुद्धि, चिंतो वह-बंधणाईएसु पुणो। वाहाओ-विय अहिओ, पावेणं जह सुयं लोए ।।२०१ पावस्स कारगाओ, सुनिंदणिज्जो कुबुद्धि-दायारो । इत्थ कहेमि कहं सो, सुणइ सुइमं सव्वहा सुहियं ।।२०२ जह कोवि वणे वाहो, कण्णंताकिट्ठ-दिड्ड-कोदंडो। घायग्ग-गयाए पुण, हरिणीए पत्थियो एवं ॥ २०३ खणमेत्त मेव चिट्ठसु, वाह वयामत्ति ताव निय ठाणे । लहु-लहुअ-अपच्चाई छुहाए बाहिज्जमाणाइँ । २०४ तेसिं थण-पाणमहं, कारित्ता जाव तुअ समीवम्मि । नो एमि तओ पट्ठा, पुणरवि तेणेव वाहेणं ।। २०५ जइ नो जइ एसि तओ, किं ता बंभ-त्थीय-पमुह-वह-जणियं । पावं पवणमाणा, नो मन्नइ तं तहा वाहो ॥२०६ ता पुणरवि सा हरिणी, जंपइ नो एमि जइ तउ सुणसु । वीसत्थस्सुवएसं, जो देइ, नरो अहिय-कारं ॥२०७ पावेण तस्स तुरियं लिप्पामि पुत्ति सा गया तुरियं । निय-वयण लुद्धा, समागया पुण भणइ एवं ॥२०८ छुट्टामि कहं सुपुरिस, तुह-बाण-पहार-मार-वाराओ। तो लुद्धउ विचिंतइ, किं एयाए पुरा भणियं ॥२०९ वीसत्थाए इमाए, पसु निहणि जं च देमि कुवएसं । ता पावाओ पावो छुट्टेमि कहं....॥२१० चतुभिः कलापकम् । इअ चिंतिऊण वाहो, विम्हिय-हियओ पयंपए एवं । भद्दे मं दाहिणओ, गच्छसि ता गच्छ... ... ॥२११ एवं तहत्ति भणिया, गया गिहं सो-विवाह-अवयंसो। ता तुज्झ कहेमि इमं, किं देसि कुपाव पावमइं ।।२१२
इति हरिणी-दृष्टान्तः ।।
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