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[57] कासु जल कित्ति वर, कुमर सच्च धण धम्म कामिय, धम्मपभाविहिँ सहु वली. रज्ज-रिद्धि तइँ तुरीय पामिय, मिल्हि तुरय मुझ हुउ तुरिय, सेवक जि आजम्म, कुमर भणइ सिउँ रे वली हुअइँ उवरिआ कम्म ॥१७६
दूहउ रज्ज रमा रामा सुधण पाणह-सुं जइ जाइँ । तउ पणि वाचा आपणी, सुपुरिस ऊरण थाइँ ॥१७७
षट्पद वचनि छलिउ बलिराउ वचनि कुरव कुल खोयु. ॥१७८
दूहउ गय घोडा थोडा नहीं, रह पायक बहु संख ।
घणीवार इणि जीवि सह पाम्या वारि असंख ॥१७९ गाथा श्री उपदेशमालायां
पत्ता य कामभोगा० । १८० जाणीय जहा भोगिंद संपया० । १८१
पद्धडी घोडानुं कहि सुं गजउं मूढ, संभलइ वत्त जइ बहु-अ गूढ । इणि जीव अणंतीवार एह, पत्तां धण जुव्वण सयण गेह ।१८२ नह दंत मंस केसट्ठिरत्तं, गिरिमेरु सरिस इणि जीवि चत्त । हिमवंत-मलय-मंदर-समाण, दीवोदहि-धरणि-सरिस-पमाण ॥१८३ आहारि न पुट्ठउ जीव एहि, भवि भवि बहु परि नव-नवइ देहि । थण-खीर-नीर पिद्धां जकेवि, सायर सरि सरिय न पार ते वि ॥१८४ बहु कामभोग सुर नरविलास, केवली न जाणइ पार तास । किणि कारणि तउ दुख धरइ जीव, बहु पडिय अवस्था होइ कीव ॥१८५
गाथा जं चिय वइणा लहियं० ॥१८६
पन्द्रडी
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