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धम्मि राग सुअ-चिंतवण, दाण-वसण जसु होइ । माणुस-भव-सुरतरु-तणउ, ए निश्चल फल होइ ।।१६
गाथा इय चितंत कुमारो, दाण- वसण-विहिय-सहल-संसारो । मन्नंतो सुन्नं तो, तेण विणा तारिसं नयरं ॥१७
. भुजंगप्रयात जिहाँ सत्त भू-पीढ-आवास-साला, जिहाँ गयण-संलग्ग-दुग्गा विसाला । सराराम वर कूव वावी रसाला, विणा दाणमेगं पि संसार जाला ॥१८ जिहाँ गयह गज्जति रज्जति राया, हया हेलि हिंडंति जव-जित्त-वाया। धरा-मंडले धीर धसमसइँ धाया, विणा दाणमेगंपि संसार माया ॥१९ जिहाँ कव्व कोऊहलाणंद-कंदा, महा-गीय-नाएण रंजिय नरिंदा । महा-पंडिया जत्थ पाढंति छंदा, विणा दाणमेगं पि संसार निंदा ॥२० महा-रूव-लावण्ण-लीला-विलासा, महा-भोग-संयोग-संसार-आसा । पिया-माय-भायंगणा पेम पासा, विणा दाणमेगं पि सव्वे निरासा ॥२१
कलशे-षट्पद ते मंदिर गिरि-विवर नयर नव रणह लिक्खइ, दाण-धम्म-विण धम्म सहू तिम सुण्णउँ पिक्खइ । 1 xx xx xx xx ते लक्खण समूह तं दिवस निसि गिणइं, जे ण जण-सिउं हसि मिलई (?) ॥२२
गाथा अह बहु-दाण-समागय-सज्जण-रोलंब-डुंब-झंकरिणो । तस्सेव कुमर-करिणो, आसि सहा सज्जणो नाम ॥२३ सो सव्वत्थ निरज्जल(म)? कुमर-नरिंदस्स पहाण-पुरुसो-व्व । सुह-असुह-कज्ज-करणे, निवारिओ धारिओ (?) लोए ॥२४ सज्जण- नामेण पुणो, पगईए दुज्जणो-वि कुमरेण । बहु-दाण-माण-पुट्ठो, जलही जलणं व पडिकूलो ॥२५
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