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[12] रास रमई रसि बालिय, तालिय दिति करि काम-विहंगु जगावइ, गावइ गीउ सरि । फुल्लह झोलि भरिज्जइ, हिसिमिसि हिंचियइ सिंगह छंटणि नेह-महीरुह सिंचियइ ॥३९|| महुर महुर सरि वज्जइ, वीण पवीण-झुणि । समउ वसंत समाणई, सायरु ससिंवयणि ॥४०
गाहा सामित्तं संपत्तं, पिय-वग्गाणं च पूरिया आसा । रिद्धी कया नयाणं, मा रुयसु वसंत जंतो-वि ॥४१ भमरा कमलम्मि गया, नयंति कालं जहा तहा-वि तया । मज्झ विणा कह होही, पियवग्गो तेण झूरेमि ॥४२
__रथोद्धता जामिणी विरहिणी व दुब्बला, वासरो नव-पय-व्व दारुणो । निद्दय-व्व तवणो वि तावगो, जुत्तमेव रिउ-राउ निग्गमो ॥४३
रासउ एरिसि उन्हालइ घोर- कालि, सायरु निवसइ अट्टाल-मालि । लडसडइ मलहीड (?) मयण मुंधि, चल्लंत पवण सीयल सुगंध ॥४४ अइ अच्छ सुकोमल कप्पडाई, हिसिमिसि हल्लंत घ गडमडाई । धुइ बहुल गुग्गुलुवह छंटणाई चंदण- सोवन्न(विलेवणाई ?) ॥४५ अंबलिय दक्ख सक्करह पाण, सिक्किरिय सुपाडल एलयाण । वासिय वासिय जल सीयलाई, विचि विचि छुट्टिज्जई निम्मलाई ॥४६ अंबा-रस अंबय कन्नलाई, घिउ खंड-रसिण निब्भर मिलाइ । अपोसिय (?) अच्छयइ मंडयाण, भोयण निप्पज्जइ धन्नयाण ॥४७
गाहा पंचविह-विसय सुक्खं, पालंतो छ-रिउ भोय-चक्कवइ । छ-च्च रसा छ-स्सत्ती, छ-च्च गुणा सायरो लहइ ॥४८ धम्मस्स सुओ अत्थो, अत्थस्स माहव-नंदणो कामो । अत्थेण हओ धम्मो, उभयं पि हया स-कामेण ॥४९
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