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[92] जोइंइ तिल्ल तिल्लह कि धार, नवि होइ राय अविचार-सार । चाहीइ चतुरपणि मूल मम्म, अनिमासिय किज्जइ नवि सुकम्म ॥ ४८१ संभलिय वयण म पतिज्ज कोइ, इकि हुअइं अकारण दुयण लोइ । पर-विग्घ-तुट्ठि नारद्द नामि, बहु अच्छई सुरनर भुवण-ठामि ॥ ४८२
गाथा तं नत्थि घरं० ॥ ४८३ सुणीयंमापत जसि ॥ ४८४
दूहउ सज्जण थोडा हंस जिम, उढेंके दीसंति । दुज्जण काला काग जिम, महियलि घणा भमंति ॥ ४८५
पद्धडी तिणि कारणि अप्पइ अप्प जोइ, मणि चिंतिय कित्तिम हेउ कोइ । जइ राय-राय जिम पडसि दावि, गुरु अंब-सुतरु गुण पच्छतावि ॥ ४८६ पुच्छइ नरिंद दिठंत तासु, सु जि कहइ मंति बहु मतिविलासु । सहु सुणिय सभिंतरि चरिय चित्त, जियशत्रु-राय मणि भयउ चित्त ।। ४८७ उप्पन्न वेग संवेग भूव, पुच्छावइ तसु कुल जाइ रूव । ललिअंग-कुमर हसि भणइ मंति, तुम्हि किउ सच्चउ ओहाण अंति ॥ ४८८ गिह पुच्छउ सिउं पीएवि नीर, न कहंति एम निय-वंस वीर । जितु कहइ सुयण सु जि हरिउ देवि, अह पेसि नयरि सिरिवास के-वि ।। ४८९ होस्यइं जि राय तिहं कोइ दक्ख, नरवाहण-नामई लद्ध-लक्ख ।। कमला कमला-गुणि तासु भज्ज, जिणि मन्नइ भूवइ सहल रज्ज || ४९० ललिअंग कुमर तसु पुत्त होइ, जियसत्तु-पुत्ति-वर वीर सोइ ।। इम सुणिय सवण सुह वयण मंति, मणि हरसिय विहसिय-वयण जंति ।।४९१ विण्णविउ विणय-सुं नरवरिंद, जियसत्तु सत्त चिरकाल नंद । परि किज्जइ कुमरि सु कहिय जेव, पट्ठवउ पुरिसवर नयरि तेउ ।। ४९२ तव सासिय भासिय बहु अ-भाण, चल्लविय चतुर नर कि-वि सुजाण । अविलंब पयाणि सुपत्त तीणि, नर वाहण-नरवर-नयर जीणि ॥ ४९३ तिणि अवसरि पुत्त-वियोग-दद्ध, नरवाहण सुअ-संगम-विसुद्ध । सह दार-सार-परिवार-जुत्त, नितु रहइ रयणि दिणि सोग-तत्त ॥ ४९४
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