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ग्रंथकार ताके छे तथा अनुरोध पण करे छे. ग्रंथकार, इतरजनो जेवा पृथग्जन के सामान्य कक्षाना हठाग्रही - कदाग्रही के एकांतवादी नथी, तेनी आ द्वारा प्रतीति मळी रहे छे. आ समजवा माटे पण, आ प्रकरणनां उपसंहार - वचनोनुं वाचन-मनन करवा जोग छे.
ग्रंथ मोटो
त्रीजुं प्रकरण छे 'पर्युषणातिथिविनिश्चय'. प्रथमना बे ग्रंथोनी सरखामणीए आ - बृहत्काय गणी शकाय तेम छे. आमां तिथि अने संवत्सरी संबंधी शास्त्राधारितपरंपराधारित तार्किक प्रतिपादन थयुं छे.
वि.सं. १९९२-९३मां नीकळेल शास्त्र - परंपराविरोधी नवा तिथिमतना 'बार पर्वीनी हानि - वृद्धि आराधनामां पण करी शकाय', तेवा, शास्त्रोना तात्पर्यथी साव विरुद्ध अने श्रीसंघमान्य गीतार्थोनी सुविहित परंपराथी तद्दन विपरीत एवा कदाग्रही अभिप्रायोनुं शास्त्र, परंपरा, तर्क, युक्ति वगेरेना परम आलंबने आमां निरसन - खण्डन थयुं छे. नवा तिथिमतना संदर्भमां आ प्रकरण, ए शुद्ध मार्गना पथिक- उपासक श्रीसंघ माटे एक अपूर्व मार्गदर्शक शास्त्रग्रंथ बनी रहे तेम छे.
आ त्रण ग्रंथो अद्यावधि अप्रकाशित हता; तेनुं संपादन तथा प्रकाशन करवामां निमित्त बन्युं ग्रन्थकार महापुरुषनी जन्मशताब्दीनुं वर्ष पूज्य गुरुभगवंत श्रीविजयसूर्योदयसूरीश्वरजी महाराजे फरमाव्युं के आ वर्ष - निमित्ते आ कार्य कर; अने आ पुस्तक आपना हाथमां छे. आ निमित्ते मने ग्रंथोना स्वाध्यायनो अने ग्रंथकार भगवंतना अक्षरदेहना सांनिध्यनो लाभ मल्यो छे, ते मारुं सद्भाग्य छे.
आ ग्रंथोनी प्रतिलिपि (प्रेस कॉपी) लखवामां तथा प्रूफवाचनादिमां मारा त्रण साथी मुनिओ - श्रीरत्नकीर्तिविजयजी, श्रीधर्मकीर्तिविजयजी, श्रीकल्याणकीर्तिविजयजीनो पूर्ण सहयोग मल्यो छे.
ग्रंथकार भगवंतना आशय विरुद्ध, मारी मर्यादाओने कारणे, आ संपादनमां कांइ क्षति रही गई होय तो ते तरफ मारुं ध्यान दोरवा विज्ञ जनोने नम्र विज्ञप्ति करूं
छं.
शीलचन्द्रविजय
नन्दनवनतीर्थ - प्रतिष्ठा-दिन
सं. २०५५ फा. शु. ५ तगडी
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