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होगा । अन्यथा मानना होगा कि हेमचन्द्र के व्याकरण में उदाहरण के रूप में एक अंश लिया गया होगा। 1. प्रश्न : इक्कहिं रन्नि वसंतयह, एवडु अंरु कांइ ।
सीहु कवड्डो नउ लहइ, मयगलु लखि विकाइ ।। उत्तर : मयगलु गलि बंधेवि करि, जहिं लिज्जइ तहिं जाइ ।
सीहु परिन्भव जइ सहइ, दह-लक्खे विक्काइ । 2. उक्ति : देउलि देउलि फुक्कियइ, गलि घल्लेविणु नत्थ ।
संख समुद्दह छंडिया, जोइ ज हुइ अवस्थ ।। प्रत्युक्ति : भाइअ संख म रोइ. रयणायर-विच्छोहियउ ।
पर-सिरि पदम (?) म जोइ, जइ विहि लिहिउ न आपणइ ।। 3. उक्ति : हंसिहि जाणिउ एउ सरु, हउ सेविसु चिरकालु ।
पहिलइ चंचु-चबुक्कडइ, ऊमटियउ सेवालु || प्रत्युक्ति : हंसा सो सरु सेवियइ, जो भरियउं निप्पंकु ।
ओछउ सरु सेवंतयहं, निच्छइ चडइ कलंकु ॥ 4. प्रश्न : ससिहर झीणउ काइ, रोहिणि पासि बइठियह । .
अम्ह हुय दुक्ख-सयाई, रमणी रामणु ले गयउ॥ उत्तर : कांई झूरहि तुह राम, सीत गइ वलि आविसिइ ।
सोनइ न लागइ काटि (? साम), माणिकि मलु बइसइ नहिं ।। 5. यह उपर 'भ्रमरान्योक्ति' के नीचे दिया गया है ।।
4. ज्ञात साहित्यप्रकार "टिप्पणी' में उदाहरणों के छन्दों के बारे में जानकारी दी है। इस पर से जिन साहित्यप्रकारों के संकेत मिलते हैं उनके बारे में कुछ अनुमान किया जा सकता है । 1. रड्डाबन्ध : गोविन्द कविवाला उदाहरण (422.6) और सू. 446 का उदाहरण
रड्डाबन्ध का सूचक है। 2. संधिबन्ध : चतुर्मुख की अपभ्रंश रामायण से लिया गया उदाहरण (331)
संधिबन्ध-का सूचक है । 3. रासाबन्ध : 357.2 और 350.1 ये रासाबन्ध के सूचक उदाहरण है ।
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