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________________ १६२ 395/1. के साथ तुलनीय : पंडुरं जइ वि रज्जए मुहं कोमलंगि खडिआ-रसेण | दिज्जए पुण कवोल-कज्जलं ता लहेज्ज ससिणो विडंबणं ॥ ('कर्पूरमंजरी', 3/33) 'हे कोमलांगी, यदि तुम्हारा मुख चूने के पानी से पोत दिया जाये और गाल पर काजल लगाया जाये तो वह चन्द्र का अनुकरण कर सकेगा ।' 395/2 = 'कुमारपाल-प्रतिबोध', पृ. 108 । (पाठांतर : चूडउ, निहित्तु, सासानलिण, संसित्तु). और तुलनीय : काहि-वि विरहाणलु संपलित्तु, असु-जलोहलिउ कवोले चित्तु । पलुट्टइ हत्थु करंतु सुण्णु, दंतिमु चुडुल्कउ चुण्णु चुण्णु ॥ ('जबूसामिचरिउ,' 4, 11, 12)। 395/4 = 'शृगारप्रकाश' पृ. 269 और 1069 पर मिलता भ्रष्ट पाठवाला उदाहरण । 395/6. के साथ तुलनीय : जेण जाएण रिउ ण कंपति... ते जाएं कवणु गुणु... किं तणएण तेण जाएण... ('स्वयंभूछन्द', 4/27) 'जिसके पैदा होने से यदि दुश्मन काँप न उठे...उसके जन्म लेने से क्या लाभ... उस के जन्म से क्या ?' तुलनीय : बेटा जाया कवण गुण, अवगुण कवणु मिएण । जां ऊभां धर आपणा, गंजीजे अवरेण ।। ('राजस्थानी दोहा', क्र. 627) 395/7. के साथ तुलनीय : तं तेत्तियं जलं सायरस सोच्चेव परम-वित्थारो | एक पिपलं तं नत्थि पिवासं निवारेइ ॥ ('छप्पण्णय-गाहा-कोसो', 147) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001465
Book TitleApbhramsa Vyakarana Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorH C Bhayani
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1993
Total Pages262
LanguageApbhramsa, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size12 MB
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