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395/1. के साथ तुलनीय :
पंडुरं जइ वि रज्जए मुहं कोमलंगि खडिआ-रसेण | दिज्जए पुण कवोल-कज्जलं ता लहेज्ज ससिणो विडंबणं ॥
('कर्पूरमंजरी', 3/33) 'हे कोमलांगी, यदि तुम्हारा मुख चूने के पानी से पोत दिया जाये और गाल पर काजल लगाया जाये तो वह चन्द्र का अनुकरण कर सकेगा ।'
395/2 = 'कुमारपाल-प्रतिबोध', पृ. 108 । (पाठांतर : चूडउ, निहित्तु, सासानलिण, संसित्तु). और तुलनीय :
काहि-वि विरहाणलु संपलित्तु, असु-जलोहलिउ कवोले चित्तु ।
पलुट्टइ हत्थु करंतु सुण्णु, दंतिमु चुडुल्कउ चुण्णु चुण्णु ॥ ('जबूसामिचरिउ,' 4, 11, 12)।
395/4 = 'शृगारप्रकाश' पृ. 269 और 1069 पर मिलता भ्रष्ट पाठवाला उदाहरण । 395/6. के साथ तुलनीय :
जेण जाएण रिउ ण कंपति... ते जाएं कवणु गुणु... किं तणएण तेण जाएण...
('स्वयंभूछन्द', 4/27) 'जिसके पैदा होने से यदि दुश्मन काँप न उठे...उसके जन्म लेने से क्या लाभ... उस के जन्म से क्या ?' तुलनीय :
बेटा जाया कवण गुण, अवगुण कवणु मिएण । जां ऊभां धर आपणा, गंजीजे अवरेण ।।
('राजस्थानी दोहा', क्र. 627) 395/7. के साथ तुलनीय :
तं तेत्तियं जलं सायरस सोच्चेव परम-वित्थारो | एक पिपलं तं नत्थि पिवासं निवारेइ ॥
('छप्पण्णय-गाहा-कोसो', 147)
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