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331 के साथ तुलनीय :
जगदाहलादकश्वंड-प्रतापोऽखंड-मंडल: । विधिना ननु चंद्राकौवेकीकृत्य विनिर्मितः ।।
('कथासरित्सागर', 12-24-5) 332 (2) के साथ तुलनीय :
हउँ सगुणी पिउ णिग्गुथ उ, णिल्लबखणु णीसगु । एकहि अगि वसंताह, मिलिउ ण अंगहिं अंगु ॥
('पाहुड-दोहा', 100) 'सरसागर' 86 वे पद का भी यही भाव है ।
333 के साथ तुलनीय :
हत्थेसु अ पाएनु अ अंगुलि-गणणाइ अइगआ दिअहा । एण्हि उण केण गणिज्जड त्ति भणिउं म्अइ मुद्धा ।।
(सप्तशतक', 4/7) 'हाथ की और पैरों की ऊँगलियाँ से' गिनने के बावजुद (अवधि के) दिन बाकी रहे, अब उसे कैसे गिनू ?' यह कहकर मुग्धा रोती है । 340/1 के साथ तुलनीय :
वरि खज्जइ गिरि-कंदरि कसेरु ।। णउ दुज्जण-भऊँहा-वकियाई, दीसंतु कलुस-भावकियाई ।।
('महापुराण', 1/3/12-13) 340/2 के साथ तुलनीय :
कसरेक-चक्क-थक्के भरम्मि धवलेण झूरियं हियए । हा किं न खंडिऊण जुत्तो हं दोहि-मि दिसाहि ॥
('जंबूशामिचरिउ', 7, 6 गाथा 6) 341/1, 2 के साथ तुलनीय :
अडवीसु वरं वासो समयं हरिणेसु जत्थ सच्छन्दो । न य एरिसाणि सामिय सुवंति जहिं दुम्बयणाई ॥
(विमलसूरि-कृत 'पउमचरिय', 35, 11)
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