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447-448. ये सूत्र केवल अपभ्रंश से नहीं परंतु समस्त प्राकृत प्रकारों से सम्बन्धित हैं । बोलिओं का थोड़ा बहुत मिश्रण साहित्यभाषा में अनिवार्य होता है और पद्यसाहित्य में छन्द की सुरक्षा के लिये कई बार प्राचीन भूमिका के, कईबार ओलचाल के तो कईबार संबद्ध बोलिओं के रूपों और प्रयोगों को प्रयुक्त किया जाता है । इसके अतिरिक्त अपभ्रंश पर साहित्य-प्रतिष्ठा के कारण संस्कृत और प्राकृत का काफी प्रभाव रहता था- अपभ्रंश के कई कवि संस्कृत-प्राकृत के व्युत्पन्न पंडित थे । अतः साहित्यिक अपभ्रंश में संस्कृत-प्राकृत के प्रभोववाले शब्द, रूप, प्रयोग मुक्त रूप से प्रयुक्त किये जाते थे । आधुनिक हिन्दी, गुजराती आदि कविता में भी हम संस्कृत के काफी शब्दों का तो क्वचित् संज्ञा-विभक्ति या आख्यातिक विभक्तिः के रूप का प्रयोग करते ही है न !
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