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________________ 415. अनु < अन्नु < अन्यद् । संयोगोप का उदाहरण । प्राचीन हिन्दी में ('रामचरितमानस' आदि की भाषा में) अनु काफी प्रसिद्ध । परन्तु वहाँ उसका अर्थ 'और' है, परन्तु यहाँ 'अन्यथा', 'वरना' ऐसा अर्थ है । १४६ 415. ( 1 ) धुंध विषयक सुन्दर उत्प्रेक्षा । 416. 417. ततः > तओ > तउ > तो, यतः > जओ > जर > जो इस ढाँचे के अनुसार कउ । 416. (1). उल्हव : सं. उद्- 'गीला करना' पर से र प्रत्यय लगाकर. * उद्र- होगा (तुलनीय सम् + उद्र= समुद्र - ). वैसे ही -ल- प्रत्यय से *उदल - होगा । *उद्ल -> प्रा. उल्ल-, ओल्ल । प्रेरक का अव- प्रत्यय लगने पर उल्लव, ओल्लव-- । -ल->ल ह - इस प्रक्रिया से उल्हव-, ओल्हव -> गुज. ओलववुं, होलaj 'बुझाना' | 418. सम = समान । इसलिये समं 'साथे (साथ में )' पर से आया हुआ 398 के अनुसार ध्रुवु समु - समाणु 'साथे (साथ में ) ' सुरक्षित है । है सूत्र रकार । ( 1 ). पियों परोक्खहाँ । यहाँ षष्ठी सति सप्तमी के अर्थ में है । विनाशितकान् विन्नासिय- में छन्द की खातिर दोहरा हुआ है । निन्नासिय (< निर्णाशित ) किया होता तो यह विशेष छूट लेनी नहीं पड़ती । (6). चइज्ज, भमिज्ज विध्यर्थ है । देखिये भूमिका में 'व्याकरण की रूपरेखा ।' हिन्दी के भविष्य आज्ञार्थ के कीजिए, गुज. करजे 'करना' इत्यादि रूपों के में ये है । दंसिज्जत, दंस का कर्मवाच्य वर्तमान कृदंत है । मूल (7). जिस प्रकार लोन (नमक) पानी में घुल जाता है वैसे यह गोरी, झोंपड़ी ठीक करनेवाला विदेश होने के कारण चूते हुए पानी से भीगने पर उसका लावण्य विरहृदशा में नष्ट हो रहा है ऐसा भावार्थ समझ में आता है । Jain Education International ध्यान (8). वंकुडअ - में - उड़-अ- प्रत्यय है जिसकी ओर हेमचन्द्र का नहीं गया । वक्र -> बँक - + उड- अ => वंकुडअ-, प्रा. गुज. वाकुड, अर्वा गुज. वाँकडु, हिन्दी बांकुरा | 419. दिवे के मूल में वैदिक दिवे है । वैदिक दिवे दिवे की भाँति For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001465
Book TitleApbhramsa Vyakarana Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorH C Bhayani
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1993
Total Pages262
LanguageApbhramsa, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size12 MB
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