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अज्ञातकर्तृक
प्रबन्ध - चतुष्टय (प्राकृतभाषाबद्धाः सिद्धसेन - पादलिप्त - मल्लवादि - बप्पभट्टिसूरि- प्रबन्धाः) [1B] द० ॥ सिरि-सिद्धसेण-पालित्त-मल्ल-सिरिबप्पहट्टि-सारिच्छा ।
नीहार-हार-धवलो जाणऽज्ज वि फुरइ जस-पसरो ॥१॥
१. सिद्धसेन-दिवाकर कथानक प्रथमं सिद्धसेन-चरितं भण्यतेउज्जेणी नाम पुरी अवंतिदेसस्स मंडणुब्भूया । अच्छेरयाइं जीए दणं विबुह-लोयाणं अन्ना न कावि नयरी रंजइ मणयं पि माणसं तीए । आसि जहट्ठिय-नामा सूरी सिरि-वुड्डवाइ त्ति। ॥३॥ तस्स पसिद्धी सोउं एगो धिज्जाइओ अहम्माणी । नामेण सिद्धसेणो वायत्थमुवागओ देसा
॥४॥ सो विय तम्मि दिणम्मि केणइ कज्जेण नाङ्-दूरम्मि । *गामम्मेगम्मि गओ पुच्छिय विप्पो [2A] वि जा जाइ ॥५॥ गामम्मि तम्मि सूरी ताव पंथस्स मज्झयारम्मि । आगच्छंतो दिट्ठो कय-कज्जो तेणिमं पुट्ठो
॥६॥ जाणसि तं भो अज्जय कत्थऽच्छइ वुड्डवाइसूरि त्ति । किं कज्जमेव भणिए दाहामी तेण सह वायं ॥७॥ एव कहियम्मि भणियं गणिणा सो वुड्डवाइ अहयं ति । ता देसु मए सद्धिं वायं इत्थेव तेणुत्तं
॥८॥
मूल अशुद्ध पाठ - १. गाममे ०
२. मज्झाय ०
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