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बप्पभट्टि - कथानक जे चारित्तिं निम्मला, ते पंचाणण सीह । जे पुण विसएहिँ गंजिया, ताहँ फुसिज्जइ लीह ॥६४१ ॥ ताहँ फुसिज्जइ लीह एत्थ तत्तुल्ला सियालहं । जो पुण विसय-पिसाय-छलिय गय करणिहिं वालहं ॥६४२ ॥ ते पंचाणण सीह सच्चु उज्जल 'निय-कित्तिं । जे निय-कुल-नहयल-मियंक निम्मल-चारित्तिं
॥६४३॥ तो निरुवम-गुण-गण-रंजिएण सिरि-अम्मराइणा गाहा । भणियाऽत्थाणत्थेण सयल-सामंत-पच्चक्खं
॥६४४॥ उच्छलिय-जसो पडि[82AJवन-सुंदरो सयल-जण-मणाणंदो । सच्चं सिरि-गोविंदो गुणेसु को मच्छरं वहइ
॥६४५ ॥ गोविंद-पहू रन्ना अब्भुट्ठिय आसणाओ नमिऊण । भणिओ मह खमियव्वं अलीय-वयणं इमं तत्तो ॥६४६ ॥ इय कय-संमाणो सो निवेण [य] बप्पहट्टिणा सूरी । निय-ठाणे संपत्तो इओ य अह अन्नया तत्थ ॥६४७ ॥ निय-रूव-विजिय-तक्काल-रमणि-सोहा समागया एगा । मायंगी नच्चण-गेय-कोविया सा उ नरवइणा नच्चावि[82B]या तओ तीए रूव-मोहिय-मणेण वण-मज्झे । पासाओ निम्मविओ संजोयत्थं तहिं तीए
॥६४९ ॥ एयं च कह वि नाऊण बप्पहट्टी तहिं गओ तत्थ । लिहिऊण गाह-विंदं समागओ नियय-ठाणम्मि
॥६५० ॥
४८॥
१. जिय.
२. अहन्नया
३.
बप्पहर्टि
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