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प्रबन्ध - चतुष्टय भरहानिलवेगाणं वन्निज्जइ तत्थ जुज्झमिइमउलं । वीर-रस-जणिय-हरिसं अईव-दप्पुब्भडिल्लाणं
॥६३० ॥ [80B]कुर-कुंजर व्व सीह व्व विपिण-महिस व्व दुट्ठ-भुयग व्व । जुद्धेण दो वि लग्गा परोप्परं विहिय-गुरु-कोवा
॥६३१ ॥ मंडलिय-चंड-कोयंङ-मुक्क-सिय-कंङ-खंडणप्पयडा । रण-रस-विहसिय-सव्वंग-तुट्ट-सन्नाह-दढ-बंधा
॥६३२॥ पेक्खंत-उग्ग-खग्ग-प्पहार-उटुंत-जलण-जालोहा । संदेह-तुलारोविय-जयलच्छि-विलास-माहप्पा
॥६३३॥ इय एवमाइ तह कह वि ताण जुझंतयाण वीर-रसो । आरोविओ कोडीए जह राया कड्ढिउं छुरियं
॥६३४॥ तस्सोवरिम्मि चलिओ महंत-वीररस-नट्ठ-मण-पसरो । तो धरिओ हत्थम्मी राया निय-अंगरक्खेहिं
॥६३५ ॥ देव न जुद्धं एयं पिच्छणयं किं [81A] तु जंपियं तत्तो । सीहासणोवविट्ठस्स राइणो पयडियं रूवं .
॥६३६ ॥ गोविंदसूरिणेवं पयंपियं अम्ह गोत्ते वि । नो केणइ जुद्धमिहं विहियं तह वि हु मए एवं ॥६३७ ॥ इय वत्रियं जहा इह वीररसोऽणुभवमंतरेणावि । तह सिंगार-रसो वि हु पयंसिओ तस्स छत्तस्स दोसस्स साहणत्थं तु मए संभावियस्स इय भूमी । संपत्ता अम्हे पुण राय न उण तुहासय -कज्जेण ॥६३९ ॥ जं सील-विरहियाणं गुणाण कोडी वि होइ निस्सारा ।। तेण जुयाणं सारा गुणाण [81B] माला जओ भणियं ॥६४० । १. तुहासव ।
॥६३८ ॥
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