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त्रण देश्य आगमिक शब्द
प्रास्ताविक प्राकत भाषाओमा प्रचुर प्रमाणमां वपरायेला देश्य शब्दोनो शास्त्रीय अने व्यवस्थित रीते बहु ओछ। अभ्यास थयो छे । हेमचंद्राचार्य अने धनपालना देश्य कोशो, प्रान व्याकरणामां संगृहीत देश्य सामग्री अने अर्वाचीन विद्वानोना प्राकृत कोशोमां देश्य शब्दो अंगे केटलुक कार्य थयुं छे खरु। पण समग्र रीते देश्य शब्दोना उद्गम, प्रकार, प्रयोग अने मूल स्रोतोनी व्यवस्थित विचारणा बाकी छे । एटलुज नहीं, एवी विचारणा हाथ धराय ते पहेलां देश्य सामग्रीनी दृष्टिरे महत्त्वना प्राकृत थानी आलोचना थवी जाईए । ते दिशामां पण घगु औछु थयु छ ।
प्राकृत साहित्यमा प्राचीनता, प्रमाण अने समृद्धिनी दृष्टिए जैन आगमोनु स्थान अद्वितीय छे । देश्य शब्दोना अभ्यास माटे ते अनेक रीते अमूल्य छ । तेमना पर भाष्यात्मक पुष्कळ सामग्री उपलब्ध छे, जेमां शब्दोना अर्थ निणय माटेनां प्राचीन परंपरागत साधनसामग्री जळवायां छे ।
अहीं छठा अंग 'ज्ञाताधम कथा'मां प्रयुक्त त्रण देश्य शब्दो अंगे थोडोक ऊहापोह को छे । आ शब्दो आगम-साहित्यमा अन्यत्र पण मळे छे । अहीं 'देश्य संज्ञा विशाळ अर्थमां-'संस्कृतेतर, अज्ञात, अल्पज्ञात के अस्पष्ट भूलना शब्दो' ए अर्थ मां समजवी ।
१. धणि 'तृप्ति' ... उद्यान के वनपंडना व कमां वृक्षोनुं वर्णन करतां, अथवा तो पुष्पोनु वर्णन करतां जे एक विशेषण वपरायु छे, ते छे :
महया ग घद्धणि मुयंतं (ज्ञाता.' ना आठमा अध्ययन 'मल्लि'मां सिरिदामगड - श्रीदामकाण्ड 'शोभीती पुष्पमाळाओं गूथी बनावेलो लटकतो गजरो' एना वर्णनमां आ विशेषण वपरायु छे । अन्यत्र पण शरूमा जणावेला संदर्भोमां 'उत्तराध्ययन', (सूत्र ३ वगेरेमां तेनो प्रयोग छे ।)
अभयदेवसूरिए गधद्धणिनी संस्कृत छाया गन्धध्राणि आपी छे, अने अर्थ 'गंघतृप्ति' ‘एटले के “तृप्तिकारक सुगंध' एवो को छे । 'पाइअसद्दमहण्णवा' मां
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