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संपादकीय
'त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित' ए श्रीहेमचन्द्राचार्य, एक उत्तम कक्षानुं महाकाव्य छे, जे लगभग छत्रीश हजार श्लोकोमा पथरायेलुंछे. आ महाकाव्य- अध्ययन सैकाओथी जैन संघमां अविरतपणे चाली रह्यं छे. आजे पण साधु-साध्वीसमुदायमां तेनुं पठन-पाठन चालु ज छे. आ महाकाव्यनी अनेक आवृत्तिओ अगाउप्रगट थई चुकी छे, एटलुंज नहि, पण तेना गुजराती, हिन्दी तेमज अंग्रेजी अनुवादो पण थया छे अने छपाया छे..
आम छतां, आ महाकाव्यनी समीक्षित अने संशोधित वाचना अद्यावधि छपाई नथी. आ दिशामां सौथी प्रथम काम स्व. मुनि श्रीचरणविजयजीए आदरेखें, अने आ महाकाव्यना प्रथम पर्वनी शुद्ध वाचना तैयार करेली. ते पछी द्वितीय-तृतीयचतर्थ एमत्रण पर्वोनी वाचना स्व. आगमप्रभाकर मुनि श्रीपुण्यविजयजीए तैयार करी हती.
आ पछीनां पर्वोनी वाचना तैयार करवानुं कार्य स्व. पंन्यास श्रीरमणीकविजयजी गणिए करेलुं, जे अद्यावधि अप्रकाशित हतुं. आ अप्रकाशित फाइलो प्रत्ये मारुं ध्यान जतां मने थयु के आ कार्य करवू जोईए. तरत ज ते कार्य हाथ पर लीधुं. अवलोकन करतां लाग्युं के पं.श्रीरमणीकविजयजीए जे हस्तप्रतिओना आधारे वाचना तैयार करी छे, ते उपरांत पण केटलीक महत्त्वपूर्ण प्रतिओछे, जेनो उपयोग थाय तो वाचना वधारे समीक्षित थई शके. एटले एरीते में प्रयत्न आरंभ्यो, जेनुं परिणाम प्रस्तुत पुस्तक छे.
प्रस्तुत पुस्तकमां पांचमुं, छटुं अने सातमु एम त्रण पर्वोनो समावेश थयो छे. आ पर्वोना संपादनमां पं. श्रीरमणीकविजयजीए निम्ननिर्दिष्ट संज्ञावाळी प्रतिओनो उपयोग कर्यो जणाय छे.
पर्व ५, सं., छा., वा.१-२, दे., ता. पर्व ६, प्र., हे., पा. पर्व ७, कां., मो., छा., हे., ता., पा.
आनी सामे मारा द्वारा उपयोगमा लेवायेली प्रतोनी संज्ञा आ प्रमाणे छे: खंता.१-२(खंभात ताडपत्र भंडार), पाता.(पाटण-हेमचन्द्राचार्य भंडारनी ताडपत्र प्रति), ला.(ला.द.विद्यामन्दिर, अमदावादनी कागळनी प्रति) उपरांत मुद्रित प्रति तो खरीज (म.संज्ञा).
आमां खंता. संज्ञक प्रतिओ विशेष प्राचीन अने शुद्ध होवाथी तेमाथी घणा श्रेष्ठ तथा शुद्ध पाठ मळी शक्या छे.
आम आ पुस्तक, बे हाथे रंधायेली रसोई जेवू थयुं छे. ते केटलुं उत्तम छे अथवा नथी, तेनो निर्णय तो सुज्ञजनो पर ज छोडवो हितावह गणाय.
आसंपादन माटेजे-तेभण्डारोना कार्यवाहकोए पोताना त्यांनी प्रतिओ के तेनी झेरोक्स कॉपीनो उपयोग करवानी संमति आपी छे, ते बदल तेमनो आभार मानु छु.
प्रस्तुत ग्रन्थना कार्यमां मुनिश्रीकल्याणकीर्तिविजयजीए खूब सहाय करी छे, जे अनुमोदनीय छे. बाकीना भागोनुं संपादन पण हाथ पर लीधेलुंज छे. श्री देव-गुरु-धर्मना पसाये ते वेलासर परिपूर्ण थाय तेवी
भावना.
-शीलचन्द्रविजय
ज्ञानपंचमी,२०५७
भावनगर
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