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अष्टमः प्रकाश : ||
सत्त्वस्यैकान्तनित्यत्वे, कृतनाशाऽकृतागमौ । स्यातामेकान्तनाशेऽपि, कृतनाशाऽकृतागमौ ॥१॥ जब द्रव्य केवल नित्य होता, दोष दो आते तभी कृतनाश होता प्रथम अकृतागम अपर दूषण सही । अब द्रव्यको मानें क्षणिक द्विक दोषका तब भी वही कृतनाश होगा प्रथम अकृतागम अपर दूषण सही ।। १ ।। पुण्यपापे बन्धमोक्षौ, न नित्यैकान्तदर्शने । पुण्यपापे बन्धमोक्षौ, नाऽनित्यैकान्तदर्शने ॥२॥ एकान्ततः सब नित्य है - इस पक्षको मानो यदि अथवा समग्र अनित्य ही है - पक्ष यह मानो यदि । ना पुण्य-पाप व बन्ध-मोक्ष नहीं घटेगा तब कभी, एकान्त-नित्य-अनित्यवादी इन-मतद्वयमें अजी ! || २ || आत्मन्येकान्तनित्ये स्यान्न भोगः सुखदुःखयोः । एकान्तानित्यरूपेऽपि, न भोगः सुखदुःखयोः ॥३॥ यदि आतमाको मान लें कूटस्थ नित्य विभो ! तभी उपभोग वह नहि पा सकेगा दुःख अरु सुखका कभी । 'एकान्त से आत्मा क्षणिक' यह भी कदाचित् मान लें पर भोग सुख अरु दुःखका तब भी न आत्माको मिले ।। ३ ।। क्रमाक्रमाभ्यां नित्यानां, युज्यतेऽर्थक्रिया नहि। एकान्तक्षणिकत्वेऽपि, युज्यतेऽर्थक्रिया नहि ॥४॥
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