SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 55
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ न्यायसंग्रह (हिन्दी विवरण) यहाँ सूत्र के प्रारम्भ में मंगल के लिए नमस्कार करते हैं। रूपाय नमः श्रीमद् हैमव्याकरणाय च । श्रीसोमसुन्दरगुरूत्तंसाय च नमो नमः ॥ ' कार को और श्रीहैमव्याकरण को तथा गुरुओं में मुकुट समान/स्वरूप श्रीसोमसुन्दरगुर को पुनः पुनः नमस्कार हो अर्थात् मैं वारंवार नमस्कार करता हूँ।' ___ यहाँ कार का स्वरूप, अरिहंत, सिद्ध (अशरीरी ), आचार्य, उपाध्याय और मुनि, उन पाँचों के आद्याक्षरों से बना हुआ है, अतः वह नमस्करणीय है। इनके द्वारा पंचपरमेष्ठि को नमस्कार होता है। यहाँ आदि में म गण( रूपा )में तीनों अक्षर गुरु हैं और वह पृथ्वीतत्त्व से युक्त है, अत: वह श्री अर्थात् लक्ष्मी या शोभा के लिए रखा गया है। कहा गया है कि : 'मो भूमिः श्रियमातनोति' (म-गण पृथ्वीतत्वसे युक्त है और वह लक्ष्मी/शोभा की वृद्धि करता है।) '' के साथ 'नमः' पद रखकर ' नमः' स्वरूप पाठसिद्ध मंत्र सब प्रकार के अभ्युदय के लिए रखा है और श्रीहैमव्याकरण सम्यग्दृष्टिवान् श्रीहेमचन्द्राचार्य द्वारा गृहीत और प्ररूपित होने से श्रुतज्ञान है, अतः इसे नमस्कार किया है । विशेषतः प्रस्तुत/इस ग्रन्थ में हैमव्याकरण का ही अधिकार होने से इसे नमस्कार किया है । अपने गुरुको नमस्कार करते समय विशेष भक्ति के कारण रूप सम्भ्रम/जल्दी को बताने के लिए 'असकृत्सम्भ्रमे' ७/४/७२ सूत्र से 'नमः' शब्द का द्वित्व किया है। अब श्रीहेमचन्द्राचार्यजी ने न्यायसूत्र के प्रारम्भ में जो वाक्य कहा है वही वाक्य यहाँ कहा जाता है। अथ ये तु शास्त्रे सूचिता लोकप्रसिद्धाश्च न्यायास्तदर्थं यत्नः क्रियते इति । अब जो न्याय, शास्त्र में सूचित है, और जो न्याय लोक में प्रसिद्ध है उसके लिए प्रयत्न किया जाता है । । यहाँ शास्त्र का अभिधेय ऊपर बताये अनुसार साक्षात्/प्रत्यक्ष ही है । सम्बन्ध और प्रयोजन भी निम्न प्रकार से है। 'अथ' अर्थात् हैम संस्कृत व्याकरण की बृहद्वृत्ति के तुरंत/बाद, अतः (इसी शब्द से) बृहवृत्ति के साथ न्यायसूत्रों का आनन्तर्य सम्बन्ध ज्ञापित होता है। और ये तु' में जो 'तु' शब्द है, उससे ज्ञापित होता है कि व्याकरणसूत्र नये बनाये जाते हैं किन्तु अन्य व्याकरण में भी न्यायसूत्र इसी प्रकार के ही हैं, अतः न्यायसूत्र चिरकाल से ही समान रूप से प्रचलित हैं और वह गुरु परम्परा द्वारा ग्रन्थकार को प्राप्त हुए हैं । अतः इस प्रकार गुरुपर्वक्रमलक्षण रूप सम्बन्ध भी बताया है । ' शास्त्र अर्थात् साङ्ग शब्दानुशासन' आदि ग्रंथ द्वारा सूचित और लोकप्रसिद्ध अर्थात् लोक १. शब्दानुशासनके पाँच अङ्ग प्रसिद्ध हैं, १. सूत्रपाठ, २. वृत्ति, ३. गणपाठ, ४. धातुपाठ और ५. लिङ्गानुशासन । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001446
Book TitleNyayasangrah
Original Sutra AuthorHemhans Gani
AuthorNandighoshvijay
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages470
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, & Nyay
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy