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________________ प्रकाशक की ओर से.. ___ परम पूज्य शासन सम्राट् तपागच्छाधिपति बालब्रह्मचारी सूरिचक्रचक्रवर्ती अनेकतीर्थोद्धारक आचार्य भगवंत श्रीमद्विजयनेमिसूरीश्वरजी महाराज के समुदाय के प.पू.जिनशासनशणगार आचार्य भगवंत श्रीविजयशुभंकरसूरिजी महाराज के पट्टधर प.पू. प्रवचन प्रभावक आचार्य श्रीविजयसूर्योदयसूरिजी महाराज व उनके पट्टधर प.पू. विद्वद्वर्य आचार्य श्रीविजयशीलचन्द्रसूरिजी महाराज की प्रेरणा से. वि.सं. २०४१में, कलिकालसर्वज्ञ श्रीहेमचन्द्राचार्यजी की वि.सं. २०४५में आनेवाली नवम जन्म शताब्दी के उपलक्ष्य में 'कलिकाल सर्वज्ञ श्रीहेमचन्द्राचार्य नवम जन्म शताब्दी स्मृति संस्कार शिक्षण निधि' की स्थापना की गई। इसी संस्था के तत्त्वावधान में पिछले दस वर्षों से प.पू. आ. श्रीविजयसूर्योदयसूरिजी महाराज व. प.पू. आ. श्रीविजयशीलचन्द्रसूरिजी महाराज के मार्गदर्शन व प्रेरणानुसार संस्कृत-प्राकृत और जैन दर्शन के विभिन्न साहित्य के अनुसन्धानकार विद्वानों को श्रीहेमचन्द्राचार्य चन्द्रक प्रदान तथा विविध प्रकार के प्राचीन अर्वाचीन संस्कृत-प्राकृत साहित्य का प्रकाशन व पुनःप्रकाशन किया जा रहा है । साहित्य प्रकाशन की इसी शृंखला में कलिकालसर्वज्ञ श्रीहेमचन्द्राचार्यजी द्वारा विरचित विश्वप्रसिद्ध संस्कृत व्याकरण श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासन को समझने में अत्यन्त सहायक वाचक श्रीहेमहंसगणि द्वारा विरचित 'न्यायसंग्रह' का राष्ट्रभाषा हिन्दी में अनुवाद व यत्किञ्चित् तुलनात्मक अध्ययन स्वरूप यही ग्रंथ प्रकाशित करते समय हम खुशी का अनुभव कर रहें है । इसी ग्रंथ का हिन्दी अनुवाद व विवेचन प.पू. शासन सम्राट् आचार्य श्रीविजयनेमिसूरीश्वरजी महाराज के समुदाय के प.पू. आचार्य श्रीविजयसूर्योदयसूरिजी महाराज की प्रेरणा से उनके शिष्य मुनि श्री नन्दिघोषविजयजी महाराज ने संपन्न किया है । एतदर्थ उनके प्रति हम कृतज्ञता अभिव्यक्त करते इसी ग्रंथ का सुंदर व स्वच्छ मुद्रण कार्य क्रिश्ना प्रिन्टरी, नारणपुरा, अहमदाबाद-१३ के कार्यकर्ता श्री हरजीभाई एन. पटेल ने किया है । एतदर्थ हम उनके प्रति आभार व्यक्त करते है। अन्त में, ऐसे मूल्यवान्, विद्वद्भोग्य व अध्ययन-अध्यापन में सहायक अन्य ग्रंथों को प्रकाशित करने का अवसर हमें पुनः पुनः प्राप्त हो ऐसी शुभेच्छा प्रकट करते हैं । भवदीय, क.स.श्रीहेमचन्द्राचार्य न.ज.श.स्मृ.सं.शि.निधि अहमदाबाद Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001446
Book TitleNyayasangrah
Original Sutra AuthorHemhans Gani
AuthorNandighoshvijay
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages470
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, & Nyay
File Size11 MB
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