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________________ ३२० न्यायसंग्रह (हिन्दी विवरण) है, वैसे यहाँ दूसरी बार का निषेध, पूर्व निषेध को दृढ नहीं करता है, ऐसा बताने के लिए यह न्याय जरूरी है। ___वस्तुतः यह न्याय, न्याय नहीं है किन्तु शब्दशक्ति के स्वभाव का परिचायक केवल वाक्य ही है । अतः अन्य वैयाकरणों ने इसके अनुकूल व्यवहार किया होने पर भी इसका न्याय के रूप में स्वीकार नहीं किया है । अतः इस व्याकरण के 'न्यायसंग्रह' में इसे सम्मिलित करना आवश्यक नहीं है, ऐसा श्रीलावण्यसूरिजी का मानना है। ॥ ११८ ॥ चकारो यस्मात्परस्तत्सजातीयमेव समुच्चिनोति ॥ ६१॥ 'च' कार जिसके पर में आया हो, उसके सजातीय का ही वह समुच्चय करता है। ___ 'च' कार का किसी भी प्रकार के विशेषण से रहित केवल समुच्चय अर्थ ही होने से विजातीय का भी समुच्चय होने का प्रसंग उपस्थित होता है । उसका इस न्याय से निषेध किया गया है। 'उपसर्ग' से पर आया हुआ 'चकार' पूर्व के सूत्र में से केवल उपसर्ग का ही समुच्चय या अनुकर्षण करता है। उदा. 'प्रतेश्च वधे' ४/४/९४ में स्थित 'चकार' से पूर्व के 'उपाद्भूषा'-४/४/ ९२ में स्थित 'उपात्'का ही समुच्चय/अनुकर्षण करता है। _ 'प्रकृति' से पर आया हुआ 'चकार' 'प्रकृति' का समुच्चय करता है । उदा. 'एतदश्च व्यञ्जनेऽनग्नसमासे' १/३/४६ स्थित 'चकार', पूर्व के 'तदः से: स्वरे'- १/३/४५ सूत्रस्थित प्रकृति-स्वरूप 'तदः' का समुच्चय करता है। प्रत्यय से पर आया हुआ 'चकार,' प्रत्यय का समुच्चय करता है। उदा. 'अझै च' १/४/ ३९ स्थित 'चकार' पूर्व के 'तृ स्वसृ-नप्त'-१/४/३८ स्थित प्रत्यय के प्रकार स्वरूप 'घुटि' पद का समुच्चय करता है। आदेश से पर आया हुआ 'चकार' आदेश का ही समुच्चय करता है। उदा. 'आ च हौ'४/ २/१०१ सूत्रगत 'आ' से पर आया हुआ 'चकार' पूर्व के 'इर्दरिद्रः' ४/२/९८ सूत्रगत 'इ' स्वरूप आदेश का ही समुच्चय करता है । आगम से पर आया हुआ 'चकार' आगम का समुच्चय करता है । उदा. 'अस् च लौल्ये' ४/३/११५ स्थित 'अस्' से पर आया हुआ 'चकार' पूर्व के 'वृषाश्वान्मैथुने'-४/३/११४ स्थित 'स्स' आगम का समुच्चय करता है । 'अर्थ' से पर आया हुआ 'चकार' अर्थ का समुच्चय करता है । उदा. 'अतिरतिक्रमे च' ३/ १/४५ सूत्रगत 'अतिक्रमे' से पर आया हुआ 'चकार' पूर्व के 'सुः पूजायाम्' ३/१/४४ स्थित 'पूजायाम्' अर्थ का समुच्चय करता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001446
Book TitleNyayasangrah
Original Sutra AuthorHemhans Gani
AuthorNandighoshvijay
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages470
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, & Nyay
File Size11 MB
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