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________________ चातुर्याम । रहा है उसके बाधक प्रमाण पर विचार करना उपयुक्त होगा। इसके लिए भगवती व्याख्याप्रज्ञप्ति की जो गाथाएं उल्लिखित की गई हैं उनपर विचार करना आवश्यक है। उनमें से प्रथम गाथा में कहा गया है कि सामायिक करने से चातुर्याम का पालन होता है । यह तो अभयदेव की बहिद्धायाण पर की गई तथा पहले उल्लिखित टीका से स्पष्ट है कि चाउज्जाम में पांच महाव्रतों का समावेश होता है। तब यदि इस अर्थ को ग्रहण कर भगवती सूत्र की उक्त गाथाओं का निर्वचन करें तो हम इस असंगत निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि चारयाम जिनमें पांचवा व्रत गर्भित है, सामयिक कहलाते हैं तथा उसी सामायिक को पांच व्रतों में विभाजित करना छेदोपस्थापना कहलाता है । इस विषम स्थिति से बचने के लिए हमें चाउज्जाम का कोई दूसरा अर्थ करना आवश्यक है। भगवान् महावीर ने दीक्षा के समय सामायिक संयम ग्रहण किया था यह आचारांग के इन शब्दों से ज्ञात हो जाता है"तओ णं समणे भगवं महावीर दाहिणेणं दाहिणं वामेणं वाम पंचमुट्टियं लोयं करेत्ता णमोकारं करेइ करेत्ता सव्वं मे अकरणिजं पावकम्मं ति कटु सामाइयं चरित्तं पडिवजह" इन शब्दों में न केवल यह निर्दिष्ट किया है कि भगवान महावीर ने सामायिक संयम ग्रहण किया पर सामायिक के स्वरूप पर भी प्रकाश डाला गया है। भगवान् महावीर ने पार्श्वनाथ के सम्प्रदाय में दीक्षा ग्रहण की थी यह सुज्ञात है और इसकी पुष्टि आचारांग के इस कथन से भी होती है कि महावीर के माता पिता पार्धापत्यिक थे । पार्धापत्यिक चातुर्याम धर्म का पालन करते थे यह सिद्ध किया ही जा चुका है। इससे इस निष्कर्ष पर पहुचना कि सामायिक और चाउज्जाम धर्म एक हैं -युक्तिसंगतही है । बौद्धग्रन्थ और चातुर्याम धर्म : चाउज्जाम के यथार्थ स्वरूप की खोज में हमारी दृष्टि बौद्ध धर्म ग्रन्थों पर भी जाती है । बौद्ध साहित्य में चाउजाम शब्द पार्श्वनाथ या महावीर के अनुयायियों के प्रसंग में प्रयुक्त हुआ है । बौद्ध साहित्य के पाठकों और अन्वेषकों ने इसका अर्थ चार याम ( हिंसा, असत्य, चोरी और परिग्रह का त्याग) ही किया है। अध्यापक धर्मानन्द कौसाम्बी ने अपनी “पार्श्वनाथ का चातुर्याम धर्म" नामक पुस्तक में यह बताने का प्रयत्न किया है कि महात्मा बुद्ध ने पार्श्वनाथ द्वारा उपदेशित चार यामों का किस प्रकार से अपने धर्म में समावेश किया । चातुर्याम का अर्थ अहिंसादि चार याम हैं । तथा भगवान् बुद्ध भी इसी अर्थ को स्वीकार करते थे यह उन्होंने दीघनिकाय के पासदिक सुत्त में निबद्ध भगवान बुद्ध के इन शब्दों से सिद्ध किया है- ऐ चुन्द अन्य सम्प्रदायो के परिव्राजक कहेंगे कि श्रमण मौज उडाते हैं। उनसे कहो कि मौज या विलास चार प्रकार के हैं। कोई अज्ञ पुरुष प्राणियों को मारकर मौज उडाता है । यह पहली मौज हुई। कोई व्यक्ति चोरी करके मौज उडाता है यह दूसरी मौज हुई । कोई व्यक्ति झूठ बोलकर मौज उडाता है, यह तीसरी मौज हुई । कोई व्यक्ति उपभोग्य वस्तुओं का यथेष्ट उपभोग कर मौज उडाता है यह चौथी मौज हुई। ये चार मौजें हीन, गंवार, पृथक्जनसेवित अनार्य एवं अनर्थकारी हैं।" यह उद्धरण देने के बाद धर्मानन्द कौसाम्बी ने कथन किया है कि बुद्ध के मत में चार यामों का पालन करना ही सच्ची तपस्या है। इससे यह तो स्पष्ट है कि भगवान बुद्ध इन चार निरोधों को मानते थे और उन्होंने पार्श्व से यह लिया होगा, पर पाली साहित्य में इन्हें चाउज्जाम की संज्ञा नहीं दी गई। इस कारण से यह मानना कि बुद्ध द्वारा स्वीकृत चार याम चाउज्जाम है युक्ति संगत प्रतीत नहीं होता। चातुर्याम का उक्त अर्थ दीघनिकाय के सामञफल सुत्त में दिये गए उस शब्द के स्पष्टीकरण से भी मेल नहीं खाता । वह स्पष्टीकरण इस प्रकार है : १ आ. १.१३ । २. आ. १००२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001444
Book TitlePasanahchariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmkirti
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1965
Total Pages538
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size12 MB
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