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________________ १४६] पाश्वनाथचरित [णिप्पचितणिप्पचिंत-निष्प्रचित ( =चिन्तारहित ) २.७.२ कणिरु-निश्चित १.१४.१२, २.३.५; २.१३.२, ६.५.७; Vणिप्पन-निस्+पद् (=पूरा होना) १६.१५.१२ कर्म विध्य० तृ० ए० णिप्पज्जउ १.२.. कणिरुत्त-निश्चित ( दे० ना० ४.३०) १३.८.१७; भू० कृ. णिप्पण्ण १.५.८ १३.२०.११ णिफल-निष्फल ३.५.७ जिल्लज्ज-निर्लज्ज १.१२.१० -णिप्फल ३.५.१० णिलय-निलय ( = आश्रय ) ५.४.६,१६.३.१० णिबंध-निबन्ध (= सम्बन्ध ) ६.१७.२,१०.७.५ णिवइ-नृपति ४.६.२ Vणिब्भच्छ-निर + भर्ल्स (=भर्त्सना करना) /णिवड-नि+पत् (= गिरना) पू० कृ० णिभच्छिवि ५.१०.१ वर्त० तृ० ब० णिवडहिं २.७.११ णिब्भर-निर्भर (=भरपूर ) ५.१.५:८.१३.१० णिवडंति १२.२.६ णिभिच्च-? (= निर्भीक ) १.१८.३;८.५.४ भू० कृ० णिवडिय ६.११.८ णिमण्णु-निर्मन्युः (= क्रोधरहित) १५.१०.७ Vणिवस-नि+वस् (= निवास करना) णिमित्त-निमित्त (1= कारण ) १.१४.१ वर्त० तृ० ए० णिवसइ १.८.१ (२=अवसर ) १३.१३.६ वर्त० तृ० ब० णिवसहि १.५.२ णिम्मल-निमल १.२३.१० ३.४.८, ३.१४.४ ४.४.१०) भू० तृ० ब० णिवसीसहि १७.८.७ णिवह-(= समूह ) १२.२.६ णिम्मविय-निर्मापित १४.४.६ Vणिवार-नि+ वारय् णिम्मूल-निर्मूल (= मूलरहित) १४.१२.१० आ० द्वि० ए० णिवारहि १२.४.७ णियं-निज १.४.४,१.१७.४;६.८.४ भू. कृ. णिवारिय ३.१५.१० -णियय ६.४.१२ णिवारु-निवारक ४.८.१ णियंब-नितम्ब ३.७.२:५.२.४,६.६.५ णिवारि-निवारिन् ( = निवारण करने वाला ) ६.७.. णियड-निकट ५.४.८ णिवारय-निवारक (= निवारण करनेवाला)८.१०.१३ णियम-नियम २.७.५:३.६.३,४.१.४,१३.१.१२ णिवास-निवास ३.६.४;३.७.५,३.६.३ णियर-निकर ( = समूह ) ६.१.१०८.१५.७१०.८.१; णिवासिय-निवासिन् + क ( =निवास करनेवाला) १६.१५.५ णिरंकुस–निरंकुश ११.६.१२ णिविट्ठ-निविष्ट १.११.३,१.१४.७८.२१.८८.२२.१ णिरंजण-निरंजन (= निर्लेप ) १४.६.४,१५.१०.३ णिवित्ति-निवृति ४.८.१०,१३.१६.१० णिरंतर-निरंतर १.१३.३;३.१२.६;६.३.१;६.३.११; णिविस-निमिष ६.११.२ ८.१६.३,६.१८.१० णिवेस-निवेश (=भावास स्थान ) १४.२३.४ णिरत्थ-निरर्थ( = व्यर्थ ) १.२०.१,१३.५०.६ Vणिवेस-नि+ वेशय (=स्थापना करना) णिरपणय-निरात्मक=आत्मवश + रहित भू. कृ. णिवेसिय ६.७.२,१७.७.१ (हि. आपेसे बाहर ५.६.७) णिव्वय-निवृत्त (= समाप्त करचुकनेवाला) १.१६.११ णिरवसेस-निरवशेष १.२१.२ णिव्वाण-निर्वाण ३.१६.६,१३.१४.१ पणिरारिउ-(इस शब्द का अर्थ डा० आल्सतर्फने महापुराणके णिव्वियार-निर्विकार ५.३.५ अनुवादमें 'केवल' तथा डा० भायाणीने पउम णिव्वुइ-निवृत्ति १८.१२.८ चरिउके शब्दकोषमें 'अतिशय' किया है । डा. णिसढ-निषध ( = एक कुलगिरि ) १६.११.५ जेकोबीने इस शब्दकी तुलना णिरुसे की है। णिसण्ण-निषण्ण (= स्थित ) १.२२.३,३.१६.२.१४.१०.३ यहाँ उक्त तीनों अर्थ उपयुक्त नहीं होते । यहाँ णिसत्त-निसक्त( = लीन ) २.१.१ बिना कारणके या निरर्थक अर्थ सब संदर्भोमें णिसल्ल-निः+ शल्य २.१५.३ उपयुक्त बैठता है।) १.४.१२,१.२२.४,१४.२८.७ णिसायरा-निशाचरा (=राक्षस) ११.८.७ णिरास-निराश २.४.४,९.१०.४ णिसि-निशा १०.६.१,१०.१०.१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001444
Book TitlePasanahchariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmkirti
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1965
Total Pages538
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size12 MB
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