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________________ १२,५] अनुवाद [६७ रविकीर्तिपर अन्य गजोंका आक्रमण अपने शत्रुको शस्त्र रहित देखकर मत्सर-युक्त यवनराजने क्षत्रियधर्मके विरुद्ध कार्य किया। उसने उसे उसी समय हाथियोंसे घेर लिया। मदसे विह्वल मस्त हाथीके समान गतिवाला, दर्पसे उद्भट, दुस्सह, नरश्रेष्ठ, श्रीसम्पन्न कुशस्थल नगरका स्वामी वह कायर जनोंके लिए भीषण और असाध्य रणमें शत्रके सामन्त तथा योधाओंके बीचमें शस्त्र रहित होकर भी सिंहके समान जूझने लगा। रणमें वह किसी विशाल गजकी लम्बी सूडको सरोवरमें मृणालके समान उखाड़ता था; किसी भयानक गजको उसके दाँतोंसे पकड़कर बड़े पहाड़के समान पृथ्वीपर पटकता था; किसी गजको घुमाकर आकाशमें फेंक देता था और वह ( वहाँ) इन्द्रके आते हुए हाथीके समान शोभा देता था; किसीके कुम्भस्थलपर वह एड़ीसे प्रहार करता था और सिंहके समान झपटकर उसे मार डालता था (तथा ) किसी हाथीको पैरोंसे (पकड़कर और ) उठाकर अनेकोंके विशाल सिरोंपर पटक देता था। रविकीर्ति संग्राममें शस्त्र रहित होकर भी युद्ध करता था; न वह डरता था न ही वह विषाद-युक्त था । सत्य ही है, जब तक शत्रुओंके बीच पौरुष तथा क्रोध नहीं दिखाया जाता तब तक मनुष्य क्या अपना कल्याण कर सकता है ? ॥३॥ रविकीति के मन्त्रियोंका युद्ध करनेके लिए पार्श्वसे निवेदन शक्रवर्मा नृपतिके पुत्रको एक बार फिर गजोंने घेरा। उसी समय मन्त्रियोंने पार्श्वनाथके पास जाकर प्रणाम किया और कहा "हे सुभट, दक्ष, जगत्में सबसे अधिक शक्तिमान् , जयको प्राप्त करनेवाले, यशसे उज्ज्वल, शत्रुओंके कंटक, हयसेन नरेन्द्र के प्रथम पुत्र, विज्ञान, ज्ञान आदिसे युक्त, अमरेन्द्र, चन्द्र और धरणेन्द्र द्वारा सेवित देव, आपके खड़ा करती है । शत्रु सेनाने अकेले रविकीर्ति नृपको एक दीनके समान घेर लिया है। आप ( अब ) मध्यस्थ न रहें, ( हमपर ) कृपा करें तथा शौर्य जागृत कर शत्र सेनाका निवारण करें। हे प्रभु, आप तत्काल उठे; इसमें विलम्ब न करें और इस रिपुदलको परास्त करें। त्रिभुवनमें ऐसा कौन है जो आपके सामने खड़ा रहे ? हे नरनाथ, आप हमारे कार्यको विफल न होने दें।" "कन्याका वरण कर शत्रु सन्धि करना चाहता था पर स्वयं हमारे द्वारा उसकी अवहेलना की गई। आपके बाहओंकी शक्ति आँककर और पौरुष जानकर (ही) हमने त्रिभुवनमें किसीको कुछ नहीं समझा।" ॥४॥ पार्श्वकी अक्षौहिणी सेनाका विवरण ओष्ठको दाँतसे चबाता हुआ, महान् योद्धा तथा शत्रुका संहारक श्री हयसेनका पुत्र ( वह पार्श्वनाथ ) अक्षौहिणी (सेना) से घिरा हुआ समुद्र के समान आगे बढ़ा। एक रथ, एक गज, पाँच योद्धा तथा अत्यन्त तेज और शोभित तीन अश्व ये दस जिस इकाईमें रहते हैं उसका नाम सेनानायकोंने "पंक्ति" दिया है। पंक्तिकी तीन गुनी “सेना" और क्रमसे उसका तिगुना “सेनामुख" होता है । सेनामुखसे तिगुना "गुल्म" होता है तथा उसकी भी तिगुनी “वाहिनी" होती है। वाहिनीसे तिगुनी "पृतना" मानी गई है । तान पृतनाओंको "चमू" नामसे जाना गया है। तीन चमुओंसे एक "अनीकिनी" की संख्या होती है तथा उसका दसगुना एक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001444
Book TitlePasanahchariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmkirti
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1965
Total Pages538
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size12 MB
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